_देश के 14 प्रधानमंत्रियों ने मिलकर 67 साल में कुल 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया। पिछले 9 साल में PM नरेंद्र मोदी जी ने हिंदुस्तान का कर्जा तिगुना कर दिया। 100 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज उन्होंने मात्र 9 साल में ले लिया। 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपए था, जो अब बढ़कर 155 लाख करोड़ हो गया है।_...10 जून को ये बात कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कही है। इसके बाद से ही भारत सरकार के कर्ज को लेकर चर्चा तेज हो गई है। तब बजट 2023, इकोनॉमिक सर्वे और संसद में वित्त मंत्री के जवाब से कांग्रेस के दावे की पड़ताल की गई।
पड़ताल के मुताबिक, भारत सरकार पर कितना कर्ज है, ये बात केंद्रीय सरकार ने बजट की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया है। केंद्र सरकार के मुताबिक 31 मार्च 2023 तक भारत सरकार पर 155 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। अगले साल मार्च तक ये बढ़कर 172 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। इसके अलावा 20 मार्च 2023 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सांसद नागेश्वर राव के एक सवाल का लिखित जवाब दिया है। सांसद नागेश्वर राव ने सरकारी कर्ज के बारे में सवाल पूछा था। इसके जवाब में वित्त मंत्री सीतारमण ने भी कहा कि 31 मार्च 2023 तक भारत सरकार पर 155 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। इस हिसाब से देखें तो पिछले 9 साल में देश पर 181% कर्ज बढ़ा है।
2004 में जब मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो भारत सरकार पर कुल कर्ज 17 लाख करोड़ रुपए था। 2014 तक तीन गुना से ज्यादा बढ़कर ये 55 लाख करोड़ रुपए हो गया। इस समय भारत सरकार पर कुल कर्ज 155 लाख करोड़ रुपए है। वित्त वर्ष 2014-15 के मुताबिक तब भारत सरकार पर कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपए था। 2014 में देश की कुल जनसंख्या 130 करोड़ मान ली जाए तो उस समय हर भारतीय पर औसत कर्ज करीब 42 हजार रुपए था। अब 2023 में भारत सरकार पर कुल कर्ज बढ़कर 155 लाख करोड़ रुपए हो गया है। भारत की कुल आबादी 140 करोड़ मान लें तो आज के समय में हर भारतीय पर 1 लाख रुपए से ज्यादा कर्ज है। इसी तरह अब अगर विदेशी कर्ज की बात करें तो 2014-15 में भारत पर विदेशी कर्ज 31 लाख करोड़ रुपए था। अब 2023 में भारत पर विदेशी कर्ज बढ़कर 50 लाख करोड़ रुपए हो गए।
2014 में BJP ने सरकार बनाने से पहले जनता से वादा किया था कि वह भारत सरकार के कर्ज को कम करेगी, लेकिन पिछले 9 सालों में देश का कर्ज कम होने की जगह बढ़ा ही है। 2014 के बाद से अब तक मोदी सरकार ने विदेश से कुल 19 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया है, जबकि 2005 से 2013 तक 9 साल में UPA सरकार ने करीब 21 लाख करोड़ रुपए विदेशी कर्ज लिया। 2005 में देश पर विदेशी कर्ज 10 लाख करोड़ था, जो 2013 में बढ़कर 31 लाख करोड़ हुआ। यानी, 9 साल में 21 लाख करोड़ रुपए विदेशी कर्ज बढ़ा। 2014 से 2022 तक 33 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 50 लाख करोड़, यानी इन 9 साल में विदेशी कर्ज 19 लाख करोड़ रुपए बढ़ा। इससे एक बात साफ होती है कि 2014 के बाद NDA सरकार में देश का कर्ज कम नहीं हुआ है।
अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया है कि सरकार का कर्ज 2 बातों पर निर्भर करता है...
1. सरकार की आमदनी कितनी है।
2. सरकार का खर्च कितना है।
अगर खर्चा आमदनी से ज्यादा हो तो सरकार को कर्ज लेना ही होता है। सरकार जैसे ही कर्ज लेती है इससे राजस्व घाटा बढ़ता है। इसका मतलब ये हुआ कि सरकार का खर्च राजस्व से होने वाली कमाई से ज्यादा है। आमतौर राजस्व घाटा तब ज्यादा होता है जब सरकार कर्ज के पैसे को वहां खर्च करती है, जिससे रिटर्न नहीं आता है।
2020 में आई कोरोना महामारी के बाद से भारत सरकार कई तरह की सब्सिडी दे रही है। जैसे...
1. 80 करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त अनाज।
2. करीब 10 करोड़ महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत मुफ्त गैस सिलेंडर।
3. करीब 9 करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपए।
4. PM आवास योजना के तहत दो करोड़ लोगों को घर बनाने में आर्थिक सहायता।
अर्थशास्त्री परंजॉय गुहा ठाकुरता एक इंटरव्यू में कहते हैं कि 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने कई फ्रीबीज योजनाओं की शुरुआत की है। लोगों को मुफ्त की चीजें देने के लिए सरकार पैसा कर्ज पर लेती है। सब्सिडी, डिफेंस और इसी तरह के दूसरे सरकारी खर्चों की वजह से देश का वित्तीय घाटा बढ़ता है।
एक सवाल जो हर किसी के मन में उठता है वह यह है कि क्या देश पर कर्ज बढ़ने से महंगाई बढ़ती है। इस मामले में केयर रेटिंग एजेंसी के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के मुताबिक, देश पर कर्ज बढ़ने का महंगाई से कोई सीधा संबंध नहीं है। सरकार कर्ज के पैसे को आय बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है। कर्ज का पैसा जब बाजार में आता है तो इससे सरकार का रेवेन्यू बढ़ता है। साथ ही उन्होंने कहा कि कर्ज के पैसे का गलत इस्तेमाल हो तो महंगाई बढ़ भी सकती है। जैसे- कर्ज लेकर पैसा आम लोगों में बांट दिया जाए तो लोग ज्यादा चीजें खरीदने लगेंगे। इससे बाजार में चीजों की मांग बढ़ेगी। मांग बढ़ने के बाद आपूर्ति सही नहीं रही तो चीजों की कीमत बढ़ेगी।
वहीं, एक अन्य अर्थशास्त्री सुव्रोकमल दत्ता का मानना है कि कर्ज लेना हमेशा किसी देश के लिए खराब ही नहीं होता है। भारत की इकोनॉमी 3 ट्रिलियन से ज्यादा की हो गई है। इस हिसाब से देखें तो 155 लाख करोड़ रुपए कर्ज ज्यादा नहीं है। ये पैसा सरकार वंदे भारत जैसी ट्रेन चलाने, रोड और एयरपोर्ट बनाने पर खर्च करती है, जो देश के विकास के लिए जरूरी है। दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में जापान जैसे देश शामिल हैं। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी कर्ज लेने के मामले में भारत से आगे है।
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