हिन्दी पत्रकारिता दिवस, गंगा दशहरा एवं ज्येष्ठ माह के अंतिम बड़े मंगल की हार्दिक बधाई (विशेष लेख)
हर समस्या का समाधान करते है हमारे भगवान श्री हनुमान व प्रभु श्रीराम।
जब सब तरफ हो अंधियारा, न दिखे कोई प्रकाश, तब जपों हनुमान चालीसा और पढो बजरंगबाण, मिटेंगे कष्ट-होगा कल्याण।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का गंगा दशहरा पर्व हरण करता है दस जन्मों तक का पाप।
तैयार कर्ता-ऋषि सैनी (प्रचार सहायक)
शिष्य डा0 मुरली धर सिंह (शास्त्री)
उप निदेशक सूचना, अयोध्या धाम
ॐ अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
ॐ कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः ।।
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सात देवता अमर हैं, जिसमें हनुमान जी महाराज श्री है। कलयुग के ऐसे देवता जिनके द्वारा मानव जीवन का कल्याण किया जा रहा है। हिन्दु धर्म में प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व है और हर एक दिन किसी न किसी भगवान की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि यदि प्रत्येक दिन में ईश्वर की भक्ति की जाती है तो पुण्य की प्राप्ति होती है। उन्हीं शास्त्रों में मंगलवार के दिन को भगवान हनुमान जी को समर्पित है। लेकिन ज्येष्ठ महीने में पड़ने वाले सभी मंगलवारों को बड़ा मंगल कहा जाता है और इनमें विशेष रूप से सभी राम भक्त और हनुमान भक्त बजरंगबली जी की पूजा करते है। बड़े मंगल को बुढ़वा मंगल भी कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान हनुमान की पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ माह के मंगलवारों को जो भक्त हनुमान जी की पूजा और व्रत करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन पूजन करने से जीवन की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है और घर में खुशहाली आती है। आइए जानते है इसका महत्व क्या है और इसकी शुरुआत कहां से हुई थी।
सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान हनुमान जी अपने प्रभु श्री राम जी से पहली बार ज्येष्ठ महीने के मंगलवार के दिन ही मिले थे। तभी से यह मान्यता है कि ज्येष्ठ माह के सभी मंगलवार के दिनों को बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल के नाम से जाना जाता है। इन खास दिन मंदिरों में सुन्दरकांड, बजरंगबाण, हनुमान चालीसा, श्रीराम स्तुति आदि के साथ-साथ भजन कीर्तन होते हैं तथा भक्तों के लिए भंडारे होते हैं और जगह-जगह पर प्याऊ लगवाए जाते हैं। ज्येष्ठ माह के बडे़ मंगल की शुरुआत लगभग 400 साल पहले नवाबी शासन के दौरान अवध क्षेत्र में हुई थी। कहानियो के अनुसार एक बार नवाब मोहम्मद अली शाह के पुत्र बहुत बीमार पड़ गया, तब उनकी पत्नी ने अपने पुत्र का इलाज कई जगह करवाया परंतु कोई लाभ नहीं हुआ। इसके पश्चात लोगों ने उनकी पत्नी को अपने पुत्र की कुशलता के लिए वर्तमान लखनऊ के अलीगंज में स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में जाने और वहां हनुमान जी की पूजा करते हुए मन्नत मांगने की सलाह दी। नवाब ने वैसा ही किया और उनका बेटा भी पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया। इसके बाद नवाब और उनकी पत्नी ने हनुमान मंदिर की मरम्मत करवाई। मंदिर की मरम्मत का काम पूरा होने के बाद ज्येष्ठ महीने के हर मंगलवार को शहर वासियों को पानी और गुड़ का शर्बत बांटा गया। तभी से बड़े मंगल की शुरुआत हुई।
अवध क्षेत्र में सनातन हिन्दु धर्म के सभी व्यक्ति भगवान बजरंगबली जी को अपना ईष्ट मानते हैं, इसीलिए लखनऊ शहर के हर गली-मोहाने में पूज्य हनुमान जी के छोटे-बड़े मन्दिर देखने को मिलते हैं। यह बडे़ मंगल का त्यौहार लखनऊ शहर एवं आसपास के क्षेत्रों में ही मनाया जाता है जिसे समस्त भक्तगण बहुत ही प्रेम व श्रद्धापूर्वक रूप से मनाते हैं। ज्येष्ठ माह के बड़े मंगल में भक्त लोग सुबह से ही मंदिरों में लाइन में लगकर पूज्य हनुमान जी के दर्शन पूजन करते है एवं तत्पश्चात् दैनिक आहार में भण्डारे का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यद्यपि भगवान हनुमान जी की महिमा की व्याख्या व विश्लेषण कर पाना किसी मनुष्य के वश की बात नहीं है, परन्तु अपने आराध्य पूज्य हनुमान जी की कृपा से उनके विषय में जो भी अनुभव हुआ उसका आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक विश्लेषण के उपरान्त यह कहा जा सकता है कि हर समस्या की निदान प्रभु हनुमान जी महाराज है। संसार का सृजन एवं संचालन पुरुष तत्व यानी भगवान शिव तथा प्रकृति यानी माता आदिशक्ति की ऊर्जाओं से होता है, आत्मा तत्व ’पुरूष’ तथा शरीर तत्व प्रकृति’ है, माया स्वरूप प्रकृति आत्मा की इच्छा से शरीर रूपी प्रकृति का सृजन, संरक्षण, संचालन एवं विनाशक कार्य करती है, चूंकि प्रकृति पंचतत्वों का स्वरूप है इन पंचतत्वों में प्रमुख स्थान वायु का है जो कि गति, ज्ञान एवं गुणों को देने का कारक है, पूज्य हनुमान जी रूद्रावतार और वायुदेव के पुत्र प्राणवायु के रूप में संसार में प्रत्यक्ष है इसलिए संसार को सजीव एवं गतिमान बनाने का दायित्व पूज्य हनुमान जी महाराज के हाथ में है। प्राणवायु ही भगवान हनुमान जी की दिव्य ऊर्जा शक्ति है, संसार भले ही नष्ट हो जाता है परन्तु प्राणवायु के अजर एवं अमर होने के नाते ब्रहमाण्ड में अवशेष रह जाती है, इसीलिए हनुमान जी को भी अजर-अमर कहा गया है। पुराणों में कहा गया है कि ’यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे’ अर्थात् जैसी ब्रह्माण्ड की रचना है उसी की प्रतिकृति मनुष्य का पिण्ड (शरीर) है, इस शरीर के हृदय में संसार के संचालक महाप्रभु श्रीमन नारायण अर्थात् प्रभु श्रीराम का अंश होता है, प्राणवायु के रूप में भगवान हनुमान जी महाराज प्रभु श्रीराम के सेवक बनकर बिना विश्राम किये अनवरत हृदय में स्पंदन करके प्रभु श्रीराम के सांसारिक संचालन अर्थात् शरीर के संचालन के दायित्वों की पूर्ति में बिना किसी स्वार्थ के समर्पित रहते है।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
बल बुद्धि एवं विद्या से परिपूर्ण श्री हनुमान जी महाराज की महिमा पर यदि ध्यान दें तो पायेगें कि हर माता शक्ति की पीठ पर लगे झण्डे-पताकों में श्री हनुमान जी की प्रतिमा दर्शित होती है, यहाँ तक कि अर्जुन के रथ में भी लगे झण्डे में श्री हनुमान जी की ही प्रतिमा थी, महाभारत के युद्ध में सीमित संख्या, सीमित बल के बावजूद महाप्रभु श्रीकृष्ण के परामर्श पर अर्जुन के रथ पर श्री हनुमान जी की उपस्थिति मात्र से ही पाण्डवों ने महाभारत युद्ध में जीत हासिल की। भगवान श्री हनुमान जी को माता सीता से अष्ट सिद्धियों एवं नौ निधियों के दाता का वरदान है यह प्राण वायु के संतुलित स्वरूप है अष्ट सिद्वियों में चार मन की शक्तियां की सिद्धि क्रमशः अणिमा, महिमा, गरिमा और लघिमा सिद्वियों के माध्यम से अपने शरीर को अदृश्य रूप में अणु के समान छोटा बना लेने, किसी सीमा तक बड़ा बनाने, अपने शरीर के भार के असीमित बना लेने तथा अपने भार को अत्यंत हल्का कर वायु के सहारे उड़ने योग्य बना लेने की शक्तियां तथा चार बल की सिद्धियाँ क्रमशः प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व के माध्यम से अपनी इच्छानुसार अदृश्य होना, बेरोकटोक किसी स्थान पर आवागमन, दूसरे के मन की बात को समझ लेना, ईश्वरत्व जैसा पद प्राप्त कर लेना और किसी दूसरे को वशीभूत कर अपना दास बना लेने की सिद्धियाँ ये कुल आठ सिद्धियाँ जो श्री हनुमान जी के पास है तथा नौ निधियों में पदम, महापदम, नील, मुकुंद, नंद, मकर, कच्छप, संख और खर्च निधि है अर्थात् इन निधियों से सात्विक गुणों और दानक्षमता में वृद्धि, धार्मिक भावनाओं प्रबलता, धनवान होना, रजोगुण एवं तमोगुण का विकास होना, शस्त्रों का संग्रह होना, सम्पत्ति का सुखपूर्वक भोग करना, अतुलनीय सम्पत्ति का मालिक होना, विरोधियों और शत्रुओं पर विजय हासिल करना। प्रभु श्रीरामचन्द्र जी के प्रति अगाध समर्पण, उनकी भक्ति की शक्ति तथा अपनी सिद्वियों के बल पर बजरंगबली जी ने न केवल अकेले लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया और लंका का दहन किया अपितु लक्ष्मण जी के प्राण भी बचाये जिसके परिणामस्वरूप प्रभु श्री रामचन्द्र जी ने अंहकार के प्रतीक, अपार शक्तिशाली एवं ज्ञानवान रावण का संहार किया।
पवनपुत्र हनुमान जी महाराज वास्तव में प्राण वायु के रूप में सभी मानव शरीर एवं जीवन यात्रा के संचालक, बल, बुद्धि और गति सहित अष्ट सिद्धियों एवं नौ निधियों को देने वाले है। पूज्य हनुमान जी की कृपा पाने का अत्यंत ही सरल एवं सहज मार्ग है स्वंय के अंदर विद्यमान प्राणवायु की सिद्धियाँ प्राप्त करना जिसे योग, ध्यान एवं प्राणायाम की क्रियाओं के माध्यम से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। प्राणवायु की सिद्धियाँ प्राप्त कर शरीर को अत्यंत छोटा, अत्यंत बड़ा, अत्यंत बुद्धिमान, अत्यंत गुणवान, अत्यंत बलशाली, अदृश्य हो जाना, आयु सीमा से परे हो जाना, बिना बेरोक-टोक सूक्ष्म शरीर के रूप में कहीं भी आवागमन कर पाना अत्यंत सरल हो जाता है। इन्हीं समस्त बिन्दुओं को हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण में चौपाइयों के रूप में उल्लिखित कर ऋषियों-मुनियो ने समस्याओं के समाधान का साधन बताया है। जिसे हनुमान चालीसा की यह चौपाईया सिद्ध करते है-
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
इसी प्रकार बजरंगबाण में की चौपाई में-
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
व दोहा में-
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
सियावर श्री रामचन्द्र जी की जय, पवनपुत्र हनुमान जी की जय।।
गंगा दशहरा
हिन्दु धर्म में गंगा दशहरा का खास महत्व है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा के दि नही मां गंगा धरती पर उतरी थीं। गंगा में स्नान और दान पुण्य से दस जन्मों के पापों का नाश सम्भव बताया गया है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को गंगा दशमी मनाए जाने का विधान है। इस दिन को दशहरा नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि दस पापों का हरण करने वाली है। ’नदीसु ’गंगा’ नदियों में गंगा को सर्वोत्तम माना गया है। धार्मिक दृष्टि से तो गंगा की पूजा-अर्चना की जाती ही है, किंतु वैज्ञानिक दृष्टि से भी गंगा का महत्त्व कम नहीं है। गंगा जल शारीरिक परिपुष्टता, व्याधिनाश, स्नायु तंत्र और जल संबंधी रोगों का नाशक है। वराह पुराण के अनुसार गंगा द्वारा दस पापों के हरण व ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा अवतरण से जुड़े उल्लेख मिलते हैं। अतः गंगा में स्नान, दान पुण्य आदि धार्मिक कार्यों से दस पापों का नाश संभव बताया है। महर्षि मनु ने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्षीय दशमी तिथि को गंगा पूजन, शिव जलाभिषेक व शिवलिंग पूजन से दस पापों से मुक्ति बताई है। ऐसा उल्लेख गंगा स्तोत्रावली में भी मिलता है। दस योगों की प्रमुखता से फल’ व पुण्य बहुगुणित हो जाते हैं-
व्यतीपाते गरानन्दे कन्याचन्द्रे रवौ।
दश योगे नरः सर्वपापैः प्रमुच्यते।।
गंगावतरण की कथा
गंगावतरण से तात्पर्य है कि ’गंगा का पृथ्वी पर अवतरण’। अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशीय राजा भगीरथ के कठिन प्रयत्नों और घोर तपस्या से ही गंगा का पृथ्वी पर अवतरण सम्भव हुआ था। अयोध्या में सगर नाम के राजा राज्य करते थे। उनके केशिनी तथा सुमति नामक दो रानियाँ थीं। केशिनी से अंशुमान नामक पुत्र हुआ तथा सुमति से साठ हजार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। यज्ञ पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा गया था। इन्द्र ने यज्ञ को भंग करने के लिए घोडे़ को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे। राजा ने अपने साठ हजार पुत्रों को घोड़ा लाने के लिए कहा। राजा के पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे जिससे कपिल मुनि का तपस्या भंग हो गई और कपिल मुनि की क्रोध अग्नि से जलकर भस्म हो गये। अंशुमान पिता की आज्ञा पाकर अपने भाईयों को खोजता हुआ जब कपिल मुनि के आश्रम पहुँचा तो गुरूड़ जी ने उसके भाईयों के भस्म होने का सारा वृतान्त बताया। गरूड़ जी ने अंशुमान को यह भी बताया कि यदि इनकी मुक्ति चाहते हो तो गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लान होगा। महाराज सगर की मृत्यु के पश्चात् अंशुमान ने गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिए तप किया परन्तु वह असफल रहे। इसके बाद उनके पुत्र दिलीन ने भी तपस्या की परन्तु वह भी असफल रहे। अन्त में दिलीप के पुत्र भगीरथ ने गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा को पृथ्वी लोक पर ले जाने का वरदान दिया। अब समस्या यह थी कि ब्रह्माजी के कमण्डल से छूटने के बाद गंगा के वेग को पृथ्वी का कौन सँभालेगा। ब्रह्माजी ने बताया कि भूलोक में भगवान शंकर के अतिरिक्त किसी में यह शक्ति नहीं है जो गंगा के वेग को संभाल सके। इसलिए उचित यह है कि गंगा का वेग संभालने के लिए भगवान शिव से अनुग्रह किया जाये। भगीरथ ने एक अंगूठे पर खड़े होकर भगवान शंकर की आराधना करने लगे। भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी गंगा को अपनी जटाओं में संभालने के लिए तैयार हो गये। इस प्रकार भगवान शिव की जटाओं से गंगाजी हिमालय की घाटियों में कलकल निनाद करके मैदान की ओर बढ़ी। भगीरथ के इस कार्य से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने घोषित किया कि गंगाजी को पृथ्वी पर भगीरथ के नाम से भी जाना जायेगा। इस प्रकार मां गंगा का धरती पर आई।
हिंदी पत्रकारिता दिवस
हिंदी पत्रकारिता दिवस प्रतिवर्ष 30 मई को मनाया जाता है। इसी तिथि को पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने 1826 ई. में प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ’उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरम्भ किया था। भारत में पत्रकारिता की शुरुआत पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने ही की थी। हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई थी, जिसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा। भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। राममोहन राय ने कई पत्र शुरू किये, जिसमें अहम हैं- साल 1816 में प्रकाशित ‘बंगाल गजट’। बंगाल गजट भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है। इस समाचार पत्र के संपादक गंगाधर भट्टाचार्य थे। इसके अलावा राजा राममोहन राय ने ’मिरातुल’, ’संवाद कौमुदी’, ’बंगाल हैराल्ड’ पत्र भी निकाले और लोगों में चेतना फैलाई। आज के समय में समाचार पत्र एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है।
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