राजकुमार गुप्ता
। मैं धरती का पहला इंसान हूं। मैं प्रकृति की संतान हूँ! मुझे रामायण महाभारत की बोघकथाओं से कोई ताल्लुक नहीं। मैं ही भारतभूमि का पहला पूर्वज हूँ! ना में आस्तिक हूँ, ना में नास्तिक हूँ, मैं वास्तविक हूँ! ना मैं गंवार हूं, ना मैं अनपढ़ हूँ, मैं आदिवासी हूं! प्रकृति की भाषा समझने वाला,प्रकृति के नियम समझने वाला,मैं अकेला इंसानी समूह हूँ! ना ही धर्म परिवर्तन के डर से पहाड़ों में छिपा हुआ हूं,ना राज के डर से जंगल की शरण लिए हूं,निस्वार्थ अपने दम पर आज़ादी बरकरार रख पाया हूँ, ना मैंने मुगल की चमचागिरी और नही मैने अंग्रेजों की गुलामगीरी की थी,ना बहन बेटियों के उपहार देकर संरक्षण पाने का इतिहास हैं। अरावली, विंध्याचल सातपुड़ा से जंगल महल तक की पहाड़ियों पर मेरे पूर्वजों के निशान जिंदा हैं! मैं जन्म से ही स्वतंत्र रहने वाला इंसान हूँ, मैं आदिवासी हूँ! ना मैं ब्राह्मण (पुजारी) ना मैं क्षत्रिय (रक्षा) ना मैं वैश्य (व्यवसाय) ना मैं शूद्र (सेवक) मैं एकमात्र ही चारों गुण रखने वाला आदिवासी हूँ, मैं आदिवासी हूँ! ना मैं ईसाई हूँ, ना मैं हिन्दू हूं, ना मैं मुस्लिम हूं, मैं प्रकृति मूलक आदिवासी हूं! ना मैं पाप-पुण्य,भाग्य,पुनर्जन्म का विश्वासी हूं,ना पाखंड, कर्मकांड, अंधविश्वास का प्रचारक हूं, ना मैं स्वर्ग-नर्क का अभिलाषी हूं, मैं तो प्रकृति पुत्र हूँ, मैं आदिवासी हूँ।

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