*हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह, ये तीनो आपस में बहुत ही घनिष्ट रिस्तेदार (एक दूसरे के परम सहयोगी) हैं- देशराज* उत्तर प्रदेश। भारतीय योग संस्थान उत्तर प्रदेश पूर्वी द्वारा तीन दिवसीय प्रांतीय योग प्रशिक्षण शिविर का ऑनलाइन आयोजन किया गया। आज दिनांक 30-4-2023 को शिविर के तीसरे और आखिरी दिन के कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए दीप प्रज्वलन प्रांतीय मंत्री पवन कुमार सिंह द्वारा और गायत्री मंत्रोच्चारण कविता भाटिया द्वारा किया गया। अखिल भारतीय प्रधान परम देशराज ,भारतीय योग संस्थान उत्तर प्रदेश पूर्वी के 500 से अधिक पदाधिकारियों, साधक और साधिकाओं (शिविर प्रतिभागियों) का स्वागत अखिल भारतीय मंत्री आदरणीय राय सिंह चौहान ने किया। आपने प्रदेश के सभी पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं, साधकों और साधिकाओं का कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिये विशेष आभार भी प्रकट किया। अखिल भारतीय प्रधान देशराज ने *ह्रदय रोग और योग* विषय पर चर्चा के दौरान हृदयरोग की भयावहता से रुबरु कराते हुये, हृदय की संरचना, स्थिति, आकृति और उसके कार्य का उल्लेख करते हुये हृदयरोग क्या है, हृदयरोग के कारण क्या हैं, हृृदय रोगियों को क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए तथा योग के अभ्यास से किस प्रकार ह्रदय रोग का उपचार किया जा सकता है? बहुत ही विस्तार से लोगों को अवगत कराया, उनका ज्ञान वर्धन किया। इसमें से कुछ विशेष बातें निम्नवत हैं:- *हृदय की संरचना और कार्य*- हृदय खोखला,एकपेशीय,संकुचनशील और मुट्ठी के आकार का होता है। इसका आकार लगभग 5"×3.5"और वजन महिलाओं में 250 ग्राम तथा पुरुषों में 350 ग्राम तक लगभग होता है। यह मध्य रेखा से दो तिहाई बांयीं ओर तथा एक तिहाई दाहिनी ओर छाती की हड्डी के पीछे दोनों फेफड़ों के बीच थोड़ा तिरछे रुप में स्थित है। यह रीढ़, छाती की हड्डी, पसलियों और मांसपेशियों से सुरक्षित रहता है। हृदय जीवन का आधार है। यह हमारे शरीर का एक स्वचालित अंग है, जो निरंतर, बिना रुके, बिना किसी विश्राम के 24 घंटों, दिन-रात, जीवन पर्यंत अपना कार्य करता रहता है। इसका मुख्य कार्य अशुद्ध रक्त को शरीर से प्राप्त करके शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में भेजना और फेफड़ों से शुद्ध रक्त प्राप्त करके संपूर्ण शरीर में वितरित करना है। हृृदय को निरंतर शरीर की रक्त वाहिनियों के माध्यम से पूरे शरीर में रक्त संचार के द्वारा प्राणवायु और अन्य पोषक तत्व पंहुचाने पड़ते हैं और शरीर में इन रक्त वाहिनीयों की लंबाई एक लाख किलोमीटर से भी अधिक है। हमारे हृदय के चार खण्ड या कोठरी होती हैं, जिन्हें अलिन्द और निलय कहा जाता है। इन्हीं कोठरियों में पहले अशुद्ध रक्त, दो बड़ी शिराओं के माध्यम से दाहिने अलिन्द, वहां से दाहिने निलय में आता है, फिर यहां से साफ होने के लिए अशुद्ध रक्त पलमोनरी धमनी से होकर फेफड़ों में जाता है। फेफड़ों से आक्सीजन युक्त, कार्बन डाई आक्साइड रहित शुद्ध रक्त पलमोनरी शिरा से होता हुआ बांयें अलिन्द में, वहां से बांये निलय में पंहुचता है। यहां से रक्त एआटिक बाल्व से होकर मुख्य धमनी एआटा में पंहुचकर पूरे शरीर में वितरित होता है। *हृदयरोग क्या है*- रक्त की सहायता से ह्रदय शरीर के सभी कोषों को, सभी अवयवों को प्राणवायु और अन्य पोषक तत्व पहुंचाने का कार्य करता है। जैसे जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है, उसकी रक्त धमनियां सख्त और संकरी होती चली जाती है। जब रक्त वाहिनियां संकरी हो जाती हैं, तो रक्त के परिभ्रमण में अवरोध खड़ा होता है। प्रारंभ में या हल्के अवरोध के कारण शरीर का काम चलता रहता है। लेकिन जब धमनियों का संंकरापन बढ़ जाता है, तो हृदय को मिलने वाले पोषण की मात्रा घटने लगती है तथा जब धमनी में पूर्ण अवरोध उत्पन्न हो जाता है, यानि धमनियां जब काफी संकरी हो जाती हैं, तब होती है- आपात स्थिति। उस समय छाती में दर्द और श्वास लेने छोड़ने में कठिनाई होती है। इसी को हृदय रोग का आक्रमण कहते हैं। अर्थात धमनियों का पूर्ण रूप से अवरोधित हो जाना हृदय रोग कहलाता है और इसको रक्त वाहिनियों का कठिनीकरण का नाम दिया गया है अर्थात जब रक्त वाहिनियों की दीवारें मोटी होने लगती हैं, तो धीरे-धीरे अपने मूल रूप को खो देती हैं। इसके अंतर्गत ब्रेन स्टोक, ब्रेन हैमरेज, कोरोनरी डिसीज हो सकते हैं। कठिनीकरण की प्रगति को रोकने के लिए आधुनिक औषधि विज्ञान प्रभावहीन रहा है। वास्तव में इसके कारणों को जानकर उनके रोकने का उपाय करना अधिक तर्कसंगत है। इसलिए रक्त वाहिनियों के कठिनीकरण के असली कारण को जानकर उसको हटा देना काफी तर्कसंगत और सहज है। *हृदय रोग के कारण*- हृदयरोग के मुख्यतः दो कारण होते हैं- पहला है अनिवार्य कारण और दूसरा आंशिक अनिवार्य कारण।अनिवार्य कारणों के अंतर्गत हमारी आयु, जाति (स्त्री और पुरुष) तथा आनुवंशिक कारण हो सकते हैं। जबकि आंशिक कारणों में- रक्त में चर्बी की अधिक मात्रा, रक्त में शर्करा की अधिक मात्रा का होना (मधुमेह), रक्त में होमोसिस्टाइन की मात्रा का अधिक बनना, धूम्रपान, निष्क्रिय जीवन, उच्च रक्तचाप, मोटापा, मानसिक तनाव आदि हो सकते हैं। यहां यह उल्लेख करना समीचीन लगता है कि हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह यह तीनों ही एक दूसरे के बहुत ही सुंदर रिश्तेदार कहलाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि यदि तीनों में से कोई एक रोग हो जाता है, तो बाकी दोनों रोग स्वाभाविक रूप से हमारे शरीर में प्रवेश करना शुरू कर देते हैं। *हृदय रोग का उपचार*- योगाभ्यास और भोजन को ठीक करके हम हृदय रोग से आसानी से बच सकते हैं। आसनों का अभ्यास करने से हमारी कोरोनरी धमनियों में जमा चर्बी पिघलने लगती है, जिससे रक्त नलिकाओं में संंकरापन दूर होता है। प्राणायाम के अभ्यास से शरीर में रक्त का शोधन होता है और प्राण का प्रवाह समान रूप से होने से हृदय की मांसपेशियां सशक्त बनती हैं। मन शांत होता है, जिससे मानसिक स्थिति ठीक बनती है, उसके काम करने की क्षमता बढ़ जाती है। जब हम शान्त वातावरण में ध्यान का अभ्यास करते हैं, तो हमारे शरीर में विशेष तरंगे बनने लगती हैं जो कि सुख और आनंद का अनुभव करवाने वाली होती हैं। ध्यान करने से शरीर में मानसिक तनाव खत्म होता है, जिससे हृदय रोग ठीक होता है। योगाभ्यास करते समय जीवन के प्रति निराशाजनक और नकारात्मक दृष्टिकोण को खत्म करके सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। प्रसन्न चित्त रहें। भोजन में कम वसा, दूध, छाछ जैसे पेय पदार्थ, नींबू पानी, नारियल पानी और सूप का प्रयोग हितकारी है। फाइबर से भरपूर भोजन, साबुत अनाज, जैसे दलिया,जई, मक्का,साबूत दालें आदि खाने से कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायता मिलती है। गेहूं के आटे को बिना छाने, उसमें चना, सोयाबीन, चोकर आदि मिलाकर मल्टीग्रेन आटे का सेवन करना चाहिए। अंकुरित दालों का प्रयोग करना चाहिए। आहार में रायता और सलाद का सेवन हो। दोनों भोजन में सलाद के रूप में पर्याप्त मात्रा में ताजी सब्जियां शामिल करनी चाहिए। हर रोज कम से कम एक फल रोज खायें। समय पर भोजन, खूब चबाकर खाना चाहिए। भोजन करते समय किसी प्रकार का व्यवधान नहीं पड़ना चाहिए, पूरा ध्यान भोजन पर हो। बाहर के भोजन से बचें। तली भुनी चीजों से परहेज करें। खाना पकाने के लिए नॉन स्टिक बर्तनों का प्रयोग करें। धूम्रपान को छोड़ दें। अल्कोहल का सेवन न करें। सुपाच्य भोजन करें। बाहर का भोजन, जंक फूड, डिब्बाबंद भोजन न लें। सायंकाल भोजन 6:00 से 7:00 के मध्य अवश्य ग्रहण कर लें। शाम के भोजन के 30 मिनट बाद धीरे-धीरे कुछ देर सैर करें। नींद भरपूर मात्रा में लें। मानसिक तनाव न बनने दें। नमक और वसा की मात्रा को भोजन से कम कर दें। प्रातःकाल की शुरुआत उषापान से करें, जिसमें नींबू और शहद (मधुमेह के रोगी शहद न लें) से प्रारंभ करें। इसके बाद देशराज ने साधकों की शंकाओं का समाधान प्रश्नोत्तर काल में बहुत ही सुंदर और सरल भाषा में किया। फिर प्रांत के की सत्यभामा सिंह, हीरालाल विश्वकर्मा, रमेश चंद्र अग्रवाल, सुरेश कुमार दुबे, अर्चना श्रीवास्तव, कविता भाटिया, जय प्रकाश श्रीवास्तव, श्रीनिवास त्रिपाठी, अनिल मैनी आदि ने अपने इस शिविर के अनुभव को साथियों के साथ शेयर किया। शिविर के अंतिम चरण में परम आदरणीय देशराज ने विशेष अनुरोध पर घुटने के रोग को दूर करने के लिए यौगिक विधियां बताई। साधना, सेवा और संस्थान इन तीनों का एक समन्वय रूप प्रतिभागियों के समक्ष रखा। साधना कैसे करनी है, उसका क्या परिणाम होता है, सेवा भावना से सेवा करते हैं, तो उसके क्या परिणाम होते हैं, संस्थान का उद्देश्य क्या है? इन सब बातों को स्पष्ट करते हुए अपनी वाणी को विराम दिया। आपने सभी को आशीर्वाद स्वरुप उनके दीर्घायु होने की और स्वस्थ रहने की कामना ईश्वर से की। भारतीय योग संस्थान के प्रांतीय प्रधान नरेेश चन्द्र वर्मा ने अखिल भारतीय प्रधान परम आदरणीय देशराज, अखिल भारतीय मंत्री राय सिंह चौहान, प्रांतीय पदाधिकारियों और सभी जिलों के शिविर से जुड़े पदाधिकारियों और सदस्यों का आभार व्यक्त किया। अन्त में हीरालाल विश्वकर्मा ने शान्तिपाठ कराया। कार्यक्रम का बहुत ही कुुशल संचालन डाक्टर मयंक भूषण पाण्डेय ने अपनी मधुर वाणी से सम्पन्न किया। इस प्रकार अति सफल और प्रान्त के लिये विशेष हितकारी तीन दिवसीय प्रांतीय योग प्रशिक्षण शिविर का समापन हुआ। आज इस कार्यक्रम में अंबेडकरनगर जनपद से मुख्य रूप से आशा राम वर्मा, प्रशांत वर्मा, संदीप लाल श्रीवास्तव,नीरज यादव, मंशाराम, राम सूरत यादव,मुकेश कुमार वर्मा,हरिमोहन, सीताराम मौर्य, लाल जी गुप्ता,अरविंद कुमार श्रीवास्तव,राज बहादुर तिवारी,सुरेश कुमार यादव,संतोष कुमार सिंह,सत्य प्रकाश शुक्ला आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे।

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