राजकुमार गुप्ता
आगरा। भगवान परशुराम को श्रीराम के काल में भी देखा गया और श्रीकृष्ण के काल में भी, क्योंकि भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं। उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था। इन्होंने सनातन संस्कृत के वैभव को बढ़ाने का कार्य किया है।
ब्लॉक प्रमुख खंदौली एवं ब्लॉक प्रमुख संघ उत्तर प्रदेश के प्रांत अध्यक्ष एड. आशीष शर्मा ने भगवान परशुराम के जन्मोत्सव इस शुभ अवसर सभी देशवासियों को मंगलकारी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए बताया कि भगवान परशुराम ने सदैव सनातन संस्कृत के वैभव को बढ़ाने का कार्य किया। बहुत कम लोगों को ही यह ज्ञात होगा कि दक्षिण भारत के आदिवासी, भील, करात जनजातियों को वैदिक वाङ्मय से परिचित करा कर पूरे दक्षिण देश में इन निरक्षर और पिछड़े आदिवासी समूहों को शिक्षा के साथ-साथ (मार्सलआर्ट) गैर-परंपरागत अस्त्रों का आविष्कार कर तपस्वी श्री परशुराम ने दीक्षित किया और दक्षिण से उत्तर तक आर्यावर्त को एकीकृत किया। हमने भगवान परशुराम से गरीबों के कल्याण की कोई सीख तो ली नहीं उल्टे अपने इन आडंबरों के जरिए सनातनियों के एक दूसरे वर्ग क्षत्रियों का परशुराम के अकारण तिरस्कार और बैर भाव मोल ले लिया।
श्री शर्मा ने बताया कि जबकि भगवान परशुराम जी महाराज किसी धर्म जाति वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य ही नहीं बल्कि वे समस्त मानव मात्र के आराध्य हैं। इन्होंने सनातन संस्कृत के वैभव को बढ़ाने का कार्य किया है। भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मांध, और आताताई राजाओं का संहार किया था, लेकिन दुष्प्रचार के कारण यह बताया गया कि इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। बृाह्मणों से इतर दूसरे वर्ग और जाति समूहों में हमारे इस मिथ्याडंबरों से भगवान परशुराम की सर्वव्यापी छवि को भी ठेस पहुंची है। आज हम बेशक परशुराम को अपना पूर्वज पुरुष घोषित कर गर्व का अनुभव करें, लेकिन सत्य यह है कि परशुराम को भगवान कहने और मानने वाले दक्षिण देश के पिछड़े आदिवासी समूह थे। जिन्होंने इस महातपस्वी की उनके समाज के प्रति की गईं महान सेवाओं के बदले में उतनी ही श्रद्धा से उन्हें भगवान मान लिया।
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