दिलीप कुमार ज़ी यूनानी दवाईयों के शौकीन थे , साथ ही वे यूनानी चिकित्सा पर अधिक यकीन किया करते थे । जब भी उन्हें किसी बीमारी में दवा की जरूरत पड़ती थीं तो वे हकीम जाहिद हसन साहब ( जयपुर ) को टेलीफोन किया करते थे और हकीम साहब उन्हें टेलीफोन पर ही दवा बता दिया करते थे । दिलीप कुमार साहब का टोंक के हकीमों से बरसों तक नाता व जुड़ाव रहा था । ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार साहब का हकीमी इलाज में काफी विश्वास रहा था , इसलिए वे कहीं सारे हकीमों के सम्पर्क में रहते थे । उन्हें यूनानी चिकित्सा का परीणाम अच्छा मिलने से वे सिर्फ़ हकीमों से ही ईलाज कराना पसन्द करते थे । परिणामस्वरूप जिसकी वजह से वे तेजस्वी रौबदार और दीर्घायु भी रहें हैं हांलाकि वे अपनी जिंदगी का शतक पूरा नहीं कर पाए । हकीमी इलाज से जुड़ी उनकी यादें उन्हें टोंक से भी जोड़े रखती थी । फिल्म दुनिया के ऐतिहासिक पुरुष अपने अभिनय के जरिए दिलों में जगह बनाने वाले दिलीप कुमार साहब का यूनानी उपचार के लिए इन हकीमों से हमेशा सम्पर्क रहा हैं __
(1) टोंक में पैदा हुए हकीम मुफ्ती अहमद हसन खां साहब जो बाद में जयपुर में रहने लगे थे ने भी दिलीप कुमार साहब का काफ़ी ईलाज किया । बताया जाता है कि भारतीय सिनेमा जगत की महान हस्ती दिलीप कुमार के स्वास्थ्य के बारे में उनकी पत्नी सायरा बानो फोन पर हकीम साहब से परामर्श भी लिया करती थी । 2016 में करीब 105 साल की उम्र में हकीम साहब का जयपुर में देहांत हो गया था ।
(2) उसके बाद हकीम मुफ्ती अहमद हसन खां साहब के ही पुत्र हकीम जाहिद हसन साहब ने भी दिलीप कुमार व उनकी बहन का इलाज किया । वे दिलों दिमाग तकवियत से मुतालिक उपचार कराया करते थे । कोरोना से पहले हकीम जाहिद हसन साहब फ्लाइट से सायरा बानो के बुलाने पर दिलीप कुमार को देखने सुबह जाते तथा शाम को वापस लौट आते थे । वर्तमान में हकीम जाहिद हसन साहब जयपुर रहते हैं ।
(3) बताया जाता है कि सम्भल के रहने वाले मशहूर हकीम रईस साहब से भी उन्होंने 1999 में मुलाकात की तथा उनसे अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए दवाइयां लिया करते थे ।
(4) हकीम सैयद निसार अली साहब जो 1805 में पैदा हुए तथा 1873 में उनका निधन हुआ । वो टोंक रियासत में नवाब का तबीब- ए- खास होने का जिन्हें गौरव प्राप्त हुआ था । उनके दो पुत्रों ने भी टोंक में हिकमत में बड़ा नाम हांसिल किया ।
(5) अमरोह के हकीम इस्लाम-उल-सिद्दीकी साहब ने भी दिलीप कुमार एवं सायरा बानों को परामर्श व दवाएं समय-समय पर दी थी । अपने स्वास्थ्य को लेकर दोनों ही काफी गंभीर रहे थे । उनको हकीमी उपचार में भी काफी विश्वास रहा था । दिलीप कुमार साहब ने अमरोह के कई मशहूर हकीमों से भी सम्पर्क बनाए रखा था । यहीं कारण रहा कि वो देश के कई मशहूर हकीमों के संपर्क में रहे थे । लेकिन अपनी जिंदगी का शतक पूरा नहीं कर सके और दिलीप कुमार इस दुनिया को अलविदा कह गए ।
वास्तव में यूनानी चिकित्सा प्राकृतिक जड़ी बूटियों और लवणों से बनी चिकित्सा हैं जो रोगों को तो दूर करती ही है साथ में शरीर को इम्यूनिटी ताकत देकर शरीर को अधिक समय के लिए मजबूत बनाएं रखती हैं जिससे रोग शरीर को आसानी से पकड़ नहीं करते हैं । वर्तमान समय में लोगों को यूनानी चिकित्सा बहुत आवश्यकता है जिसे अपनाना चाहिए ।
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