राजकुमार गुप्ता
विल्सन रोग __ विल्सन रोग एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर में तांबे की मात्रा काफी बढ़ जाती है । यह एक आनुवंशिक बीमारी है । इस विल्सन रोग के  कारण लीवर , मस्तिष्क और अन्य महत्वपूर्ण अंगों में तांबा जमा हो जाता है । विल्सन रोगी में लीवर पचित भोजन से तांबा अवशोषित करके पित्त में  उत्पादित पदार्थ के रुप में  उत्सर्जित करने के बजाए उसे खून में सीधा डाल दिया जाता है जिससे खून के साथ तांबा शरीर के सभी अंगों के हिस्सों में जा कर जमा हो जाता हैं और अंगों की क्रियाविधि को भंग कर देता हैं । 

 लक्षण __
ज्यादातर इसे पहचानने में देरी हो जाती हैं जिससे मरीज़ घातक स्थिति में पहुंच जाता हैं । बाद में जब खून द्वारा शरीर में तांबा की मात्रा बढने पर लिवर संबंधी या तंत्रिका तंत्र की समस्या होने लगती हैं तब जाँचों में यह बीमारी सामने आती हैं जिसमें निम्न लक्षण दिखाई देते हैं __
 दुर्बलता आने से शरीर सूखने व वजन घटने लगता हैं , थकान महसूस करना , उल्टी या जी मिचलाना , भूख में कमी , शरीर पर खुजली , पीलिया, या त्वचा का पीलापन , पैरों और पेट पर सूजन , पेट में दर्द या सूजन और कब्ज़ होना , स्पाइडर एंजियोमास , या त्वचा पर दिखाई देने वाली शाखा जैसी रक्त वाहिकाएं , ज्यादा कॉपर जमा होने पर मांसपेशियों  और जोड़ों में ऐंठन और दर्द होने लगता हैं , हाथ पैरों में ज्यादा ऐंठन से चलना फिरना बन्द हो जाता है , धीरे धीरे आवाज़ भी खतम होने लगती हैं ,  
मुंह से लार टपकने लगती हैं , आदि दुष्प्रभाव दिखाई देने लगते हैं । रोगी में ऐसे लक्षण 6 से 10 वर्ष के बाद दिखाई देने लगते हैं और ज्यादातर रोगी 30 वर्ष से अधिक नहीं जी पाते हैं । 

 जटिलताएं : __
विल्सन रोग से निम्न जटिलताएं उत्पन्न होती हैं , लेकिन साथ ही चिकित्सा पूर्ण होने के बाद भी इस बीमारी के कारणों से उत्पन्न कुछ साईड इफेक्ट रह जाते हैं जिनकी वजह से मरीज़ कई साईड इफेक्ट के साथ जिन्दा  रहता है__
(1) यकृत की विफलता – यकृत के कार्य धीरे-धीरे कम हो जाते हैं और तीव्रता से यकृत विफलता की ओर ले जाता हैं । इस मामले में यकृत प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है ।
(2) लीवर सिरोसिस – लीवर के निशान को लीवर सिरोसिस कहते  है। लीवर में कॉपर की अधिक मात्रा से लीवर की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं । जब लीवर खराब हो चुकी कोशिकाओं को ठीक करने की कोशिश करता है , तो इससे और अत्यधिक क्षति होती है और निशान बन जाते हैं। ये निशान लीवर की कार्यप्रणाली को कम कर देते हैं।
(3) गुर्दे की समस्याएं – गुर्दे की पथरी, और मूत्र में अमीनो एसिड की उच्च सांद्रता गुर्दे में पाई जाने वाली कुछ असामान्यताएं हैं। ये स्थितियां गुर्दे के कार्य को खराब करती हैं।
(4) हीमोलिसिस – रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने से फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। हीमोलीसिस से जुड़ी जटिलताएं पीलिया और एनीमिया हैं।
(5) स्नायविक  समस्याएं – स्नायविक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे_ अनैच्छिक मांसपेशियों की गति , बोलने में कठिनाई और कंपकंपी ।

यूनानी चिकित्सा __
यूनानी चिकित्सा एक चैलेटिंग एजेंट ( दूसरी धातु के साथ जुड़ कर उसे हटाने की प्रक्रिया ) के रुप में कार्य करती हैं । यूनानी दवाओं से कोई साईड इफेक्ट भी नहीं होते हैं । अगर समय रहते जल्दी ही यूनानी चिकित्सा करवाई जाती है तो रोगी की सिरम कॉपर लेबल तीन से चार महीने में सामान्य आने लगती हैं । इस तरह यूनानी चिकित्सा से इस रोग से आसानी से छुटकारा मिल सकता हैं और रोगी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता हैं । यूनानी दवाइयां यकृत की क्रियाविधि सही करके उसे सुचारू रूप से चलाता है और क्षय हुआ यकृत सही होने लगता हैं । रोगी की सीरम कॉपर जांच हर माह करवाई जाती हैं जिसमें देखा जाता हैं कि सीरम कॉपर की क्या लेवल रही हैं । यूनानी दवाओं से सीरम कॉपर लेवल धीरे धीरे सामान्य आ जाती हैं । तांबा सफ़ेद पाउडर के रुप में कुछ आंसूओं से और मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकलने लगता हैं । इस तरह के रोगियों को मेरे यू ट्यूब चैनल __"न्यूरो प्वाइंट "  पर देखा जा सकता है जिनकी सिरम कॉपर लेबल सामान्य आ गई हैं और काफ़ी सामान्य हो गए हैं । लेकिन रोगी ज्यादा गम्भीर होने पर उसे सामान्य स्थिति में लाना मुश्किल हो जाता हैं । 

ऑक्यूपेशनल हिज़ामा थेरेपी – न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर वाले मरीजों को ऑक्यूपेशनल हिजामा थेरेपी दी जाती है जिससे नर्व संबधी ऐंठन और मिजाज, शरीर में व्यक्तित्व परिवर्तन को कम करने में मदद करता हैं ।

सर्जरी द्वारा लिवर प्रत्यारोपण__
यदि लीवर की क्षति गंभीर है  तो यकृत प्रत्यारोपण ( Liver Transplant ) करके रोगी को बचाने के लिए एक अच्छा तरीका यह भी है ।  लीवर ट्रांसप्लांट के दौरान, एक सर्जन आपके रोगग्रस्त लीवर को हटा देता है और इसे डोनर से स्वस्थ लीवर से बदल देता है । अधिकांश प्रतिरोपित लीवर उन दाताओं से आते हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है । लेकिन कुछ मामलों में लीवर किसी जीवित डोनर से भी आ सकता है, जैसे कि परिवार का कोई भी सदस्य । उस स्थिति में, सर्जन आपके रोगग्रस्त यकृत को हटा देता है और इसे दाता के यकृत के एक हिस्से से बदल देता है । इसमें रोगी का उपचार रोगी की स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार होता है।

डॉ. लियाकत अली मंसूरी
( न्यूरो यूनानी चिकित्सक एवं हिजामा स्पेशियलिस्ट )
गवर्नमेंट यूनानी डिस्पेंसरी

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