राजकुमार गुप्ता
इस देश के कुछ महानायकों का मैं ऋणी हूं। जिसमें फुले. पेरियार. आंबेडकर और भगत सिंह  शामिल हैं। 
आज भगत सिंह की शहादत दिवस हैं। कोई 14या 15 साल का रहा होऊंगा, जब भगत सिंह की छोटी जीवनी पढ़ने को मिली। अंतिम पंक्तियों में जब भगत सिंह की फांसी का वर्णन शुरू हुआ, तो आंसू थम नहीं रहे थे। सिसकियों और हिचिकों से साथ रोने लगा। नानी मां घबड़ा गई क्या हुआ? नानी मां को कुछ बताया नहीं। 

भगत सिंह की जीवनी और उनका विचार पढ़ने के बाद मन ही मन देश और समाज के लिए जीवन समर्पित करने का संकल्प ले लिया। एक ही धुन सवार रहती थी, भगत सिंह बनाना है। देश समाज के लिए फांसी पर चढ़ जाना है। सच कहूं तो जीवनी ने आदमी बनने की धुन पैदा कर दी। घर-परिवार, जांति-पांति, धर्म-मजहब, पद-प्रतिष्ठा से मुक्ति पाने की भावना पैदा कर दिया। 

मन ही मन तय कर लिया कि भगत सिंह जैसा देश बनाने का सपना लेकर फांसी पर चढ़े थे। वैसा देश बनाए बिना चैन की सांस नहीं लूंगा। भरसक कोशिश किया। कई बार हारा। अपने सिद्धांतों से समझौता किया। मूल्यों को छोड़ा। कई बार अभाव , पराजय और हारे मन ने आदर्शों-सिद्धांतों और सपनों की बातें छोड़कर जीने के लिए धन कमाने लिए प्रेरित किया। कई बार अभावों और अपमान ने भगत सिंह का रास्ता छोड़ने को बाध्य किया। कई बार पद-प्रतिष्ठा की चाह ने भगत सिंह का रास्ता छोड़ने की ओर धकेला।

भगत सिंह मैंने भरपूर कोशिश की। कई बार भरपूर कोशिश की। भगत सिंह आपने मुझे बेहतर इंसान बनने, दुनिया के लिए जीने-मरने की प्रेरणा दी। वह मेरी थाती है। उस थाती ने मुझे जीवन के खूबसूरत लम्हे दिए। 

आज भी आपका जीवन और आपके सपने प्रेरित करते हैं। मैं आपका ऋण उतार नहीं पाया। इसका अफसोस है।

भगत सिंह
एक ऐसा नाम
जो खून में उतर जाता है
रोमांच से भर देता हैं
नसें फड़क उठती हैं
आदर्श जग उठते हैं
छोटेपन से घृणा होने लगती है
आत्ममोह दूर भाग जाता
मेहनतकशों के चेहरे
सामने आ जाते हैं
हर अन्याय के खात्मे के लिए 
उद्धत कर देता है
अन्यायी सत्ताओं को चुनौती देने का
साहस पैदा हो जाता है
मेरे नायक
आपको सलाम!

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