राजकुमार गुप्ता
इस गांव में पण्डों के सोलह परिवार हैं और इन्हीं परिवारों में से ही कोई व्यक्ति होली से निकलता है। होली के दिन यहां बहुत भारी मेला लगता है।
यहां पर एक प्रह्लाद जी का मंदिर है जिसमें श्री नरसिंह भगवान व प्रह्लाद जी की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं। पास में ही एक प्रह्लाद कुण्ड भी है।
जिस पण्डा जी को जलती हुई होली में से निकलना होता है वह बसन्त पंचमी से नित्य यमुना जी में स्नान करके भजन करते हुए प्रह्लाद जी के मंदिर में ही सोते हैं। उस दिन से वह अन्न ग्रहण न करके केवल दूध, दही और फल का सेवन ही करते हैं। फाल्गुन शुक्ल नवमी से वह निर्जला व्रत रखकर उसी मन्त्र का निरंतर जाप करते हैं जिसका जाप श्री प्रह्लाद जी ने किया था।
इस गांव में होली को होलिका दहन के कुछ दिन पूर्व बनाया जाता है। इसका व्यास लगभग तीस फुट और ऊंचाई लगभग पन्द्रह फुट होती है। मान्यता है कि होली से निकलने का मुहूर्त स्वयं प्रह्लाद जी निकालते हैं। पण्डा जी मन्दिर में हवन करते हैं और पास में रखे दीपक की लौ पर हथेली रखकर उसकी गर्मी अनुभव करते हैं। जब उन्हें दीपक की लौ शीतल महसूस होने लगती है तो वे होली प्रज्वलित करने का आदेश देते हैं परंतु होली में आग लगाने से पहले वह पण्डा जी प्रह्लाद कुण्ड में स्नान करने जाते हैं।
पण्डा जी के होली में से निकलने से पहले उनकी बहन लोटे में जल लेकर उस जल को होली के चारों ओर डालते हुए होली की प्रदक्षिणा करती है। दहकती होली की आग के बीच से जब पण्डा जी निकलते हैं तो आग उनका बाल भी बांका नहीं करती जिसे देख हर कोई अचंभित हुए बिना नहीं रह पाता और सारा वातावरण भक्त प्रह्लाद के जय-जयकारों से गूंज उठता है।
मान्यता है कि इसी गांव में हिरण्यकश्यप के कहने पर उसकी बहन होलिका ने भक्त प्रह्लाद को जलाने का प्रयास किया था लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
इस रोमांचकारी व अद्भुत चमत्कार को देखकर हर कोई कहने लगता है कि ब्रज में फूलों की होली देखी, रंग अबीर गुलाल की होली देखी पर फालैन गांव की यह होली अपने आप में अनूठी होली है।
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