उतरौला(बलरामपुर) उतरौला नगर के मध्य में बने ऐतिहासिक ज्वाला महारानी मंदिर लाखों लोगो की श्रद्धा व विश्वास का केंद्र है। चैत व शारदीय नवरात्र में दूर दराज के श्रद्धालु इस मंदिर पर आकर मन्नत मांगते हैं और मनोकामना पूरी होने पर मंदिर पर आकर कड़ाह प्रसाद चढ़ाते हैं।
 इस कारण पूरे वर्ष श्रद्धालु कड़ाह प्रसाद चढ़ाने के लिए मंदिर पर आते हैं।
मंदिर के पुजारी चतुर्देश शास्त्री बताते हैं कि आदि काल में राजा दक्ष यज्ञ कर रहे थे। इस यज्ञ में राजा दक्ष ने भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। इससे नाराज होकर देवी सती ने यज्ञ में कूद कर जान दे दी। पत्नी के वियोग में भगवान शंकर देवी सती के मृत्यु शरीर को लेकर ताण्डव करने लगे। शिव के ताण्डव से सृष्टि में बाधा उत्पन्न होने लगी। भगवान शंकर के मोह को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी के शरीर का अंग भग कर दिया।‌जिस स्थान पर देवी के अंग गिरे उस स्थान पर शक्ति पीठ की स्थापना हुई। देवी के शरीर से निकली ज्वाला उतरौला के इस स्थान पर गिरने से यहां पर गड्ढा हो गया था। इस कारण इस स्थान को चतुकोणीय चबूतरे से ढक कर ज्वाला देवी स्थान बना दिया गया। लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले इस चबूतरे पर छोटा सा मंदिर बना दिया गया। उसके बाद प्रसिद्ध समाजसेवी सम्पदा देवी ने इसका जीर्णोद्धार कराया और विशाल मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को राजस्थानी कलाकारों के द्वारा निर्माण किए जाने से इसमें राजस्थानी कला की कलाएं दिखाई पड़ती है। इस मंदिर पर लाखों लोग आकर अपनी मन्नत मांगते हैं और मनोकामना पूरी होने पर सोमवार व शुक्रवार को कडाह करके हलुआ बनवाते हैं और उसके प्रसाद का वितरण करते हैं। चैत व शारदीय नवरात्रि पर मां ज्वाला की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर के अन्दर या  ज्वाला के चबूतरे के किनारे मां लक्ष्मी,मां दुर्गा व मां सरस्वती की मूर्तियां पत्थर की लगी हुई है। मंदिर में श्रद्धालु चुनरी,गरी अक्षत,फल फूल लौंग, प्रसाद चढ़ाते हैं। इस मंदिर के व्यवस्थापक अमर चंद गुप्ता ने बताया कि ज्वाला महारानी मंदिर उतरौला का चैत व शारदीय नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है।‌ 
इसके महत्ता को देखते हुए मंदिर की सुरक्षा के लिए त्योहारों में पुलिस प्रशासन की भारी व्यवस्था रहती है।
असगर अली
 उतरौला 

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