शब ए बराअत पर विशेष

उतरौला(बलरामपुर )
शब-ए-बारात मुस्लिम समुदाय के प्रमुख पर्वों में से एक है। यह इबादत की रात होती है। इस साल देश भर में शब-ए-बारात का त्योहार 7 मार्च को मनाया जाएगा। यह त्योहार चांद के दिखने पर निर्भर होता है।
शब-ए-बारात में इबादत करने वाले लोगों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। 
शब-ए-बारात का अर्थ है शब यानी रात और बारात यानी बरी होना। शब-ए-बारात के दिन इस दुनिया को छोड़कर जा चुके पूर्वजों की कब्रों पर उनके प्रियजनों द्वारा रोशनी की जाती है और दुआ मांगी जाती है। मान्यता के अनुसार इस रात को अल्लाह अपने चाहने वालों को हिसाब-किताब रखने के लिए आते हैं। इस दिन जो भी सच्चे मन से अल्लाह से अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं। ऐसा करने से अल्लाह उनके लिए जन्नत के दरवाजे खोल देते हैं।
इसलिए शब-ए-बारात में लोग रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं।

इस रात में मुसलमान जागकर खास इबादत करते हैं

इन्हीं बातों में नफिल नमाजे पढ़ना, अपने पूर्वजों के लिए दुआ ए मगफिरत करना और कुरान की तिलावत करना अहम माना जाता है। घरों की महिलाओं द्वारा अच्छे-अच्छे पकवान भी बनाए जाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से शब ए बराअत अरबी के आठवें महीने यानी शाबान के 15 वीं तारीख को मनाया जाता है। शाबान महीने के बाद रमजान का महीना शुरु होता है। रमजान महीना मुसलमानों में सबसे पवित्र महीना माना जाता है।शब क मतलब रात और बरात का मतलब माफी होता है। इस दौरान मुसलमान पूरी रात अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी की दुआ करते है। ऐसा माना जाता है कि आने वाले साल के भाग्य का फैसला इसी रात में किया जाता है। इसी वजह से मुसलमान इस रात को विशेष इबादत करते हैं। शब ए बारात विशेष तौर पर एशिया के मुल्कों में मनाया जाता है। बड़ी संख्या में लोग कब्रिस्तान जाते हैं। और अपने पूर्वजों या इस दुनिया से जा चुके रिश्तेदारों और करीबियों के लिए दुआ ए मगफिरत करते हैं। दरअसल शबे बरात की रात मुसलमानों के आखरी पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम मदीना के कब्रिस्तान जन्नतुल बकी गए थे।
 इसी एतबार से मुसलमान उनका अनुसरण करने लगे। इस बार शबे बारात मनाने का सबसे बेहतर तरीका यह होगा कि लोग अपने घर या मस्जिदों में खूब नफील नमाज़ पढ़े। क्योंकि अतिरिक्त नमाजो का पढ़ना भी नेकी कमाने का जरिया होता है। उक्त जानकारी जामा मस्जिद के पेश इमाम मौलाना अख्तर रजा कादरी ने दी।
असगर अली
 उतरौला 

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