उतरौला(बलरामपुर) रमज़ान शरीफ की आमद करीब आते ही अकीदतमंदों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। इबादत, रहमत, मगफिरत और बरकत का यह मुकद्दस महीना इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता है।
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार महीने 29 या 30 दिन के होते हैं। इस बार यदि 22 मार्च को चांद दिखा तो रमजान का पवित्र महीना 23 मार्च गुरुवार से शुरू होगा। रमजान को लेकर बाजारों में खजूर, सेंवई, लच्छा, सूतफेनी, चिप्स, पापड़, ड्राई फ्रूट्स सहित अन्य किराना सामानों का स्टाक मंगवाया जा रहा है। दिनभर रमज़ान में रोजा रखने के बाद शाम को रोजेदार इफ्तार करते हैं। जिसमें खजूर, फल, ड्राई फ्रूट्स सहित विभिन्न पकवान का सेवन करते हैं। रमज़ान को लेकर व्यवसाई भी जरूरी वस्तुओं की तैयारी में जुटे हुए हैं ।
जामा मस्जिद उतरौला से पेश इमाम कारी अख्तर रजा कादरी जमाई
कहते हैं कि
बंदे को हर बुराई से दूर रखकर अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देने वाला पाक महीना रमज़ान की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन होने जा रही है। फिज़ा में घुलती अजान और दुआओं में उठते लाखों हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत दे रहे हैं।
दौड़-भाग और खुदगर्जी भरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देने वाले रमज़ान माह में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं, झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद, रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब पहुंचा देती है।
रमजान की फजीलत : इस माह में रोजेदार अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश के लिए भूख-प्यास समेत तमाम इच्छाओं को रोकता है। बदले में अल्लाह अपने उस इबादत गुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है।
*रमज़ान की विशेषताएं* : इंसान के अंदर जिस्म और रूह है। आम दिनों में उसका पूरा ध्यान खाना-पीना और दीगर जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है। इसी की तरबीयत और पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया है।
रमजान में की गई हर नेकी का सवाब एक के बदले 70 गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। साथ ही इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं।
*रमज़ान के तीन अशरे* : अमूमन 30 दिनों के रमजान माह को तीन अशरों (खंडों) में बांटा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है। दूसरा अशरा ‘बरकत’ का है जिसमें खुदा बरकत अता करता है जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है
असगर अली
उतरौला
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