रचना - प्रेम..विश्वास..अंधविश्वास..!

गाँव-देश में जादू-टोना,
भूत-प्रेत का कॉन्सेप्ट पुरातन है,
कमोवेश...सनातन है...!
ओझा-सोखा,तांत्रिक-ज्योतिषी
इसके संरक्षक और पोषक हैं...
कभी नींबू...कभी मुर्गा चढ़ाकर
कभी फूँक और भभूत से,
कभी हरी मिर्च की धुआँस से,
कभी मोरपंखी से...तो कभी...
भालू के बालों से जंतर बनाकर
इनका इलाज कर दिया जाता है
इन सब से इतर होता है....
माँ की प्यारी सी फूँक...या फिर..
नजर उतारने को लकड़ी तोड़कर
माथे के चारों और घुमाकर,
फेंक देने का टोटका.....!
कितना प्यारा टोटका होता है...
माथे पर काजल का टीका लगाना
इसका मतलब साफ होता है,
किसी बला का पूर्वानुमान लगाना
और...बला से बचाने का....
भरसक जतन करना....
वास्तव में यह परस्पर,
प्रेम और विश्वास का बोध है..पर..
आज विकास के दौर में मित्रों...
भूत और भभूत..दोनों की ही,        
समाज में  मान्यता घटी है...!
भूत को कोई अब मानता नहीं,
भभूत से सब दूरी बनाए जा रहे हैं
अब तो भूतकाल की बातें भी...
आसानी से बिसार दी जा रही हैं..
वर्तमान में जीने वाले जिंदादिल 
भविष्य के भौकाल की ही,
हमेशा कामना करते हैं...
जादू..नजरों का धोखा है...
टोना-टोटका,भूत-प्रेत....!
और कुछ नहीं..बस अंधविश्वास है      ओझा-सोखा,तांत्रिक-वान्त्रिक पर
विज्ञान एवं चिकित्सा भारी है...
यह सही भी है..क्योंकि इसने....!
जीने की दशा सुधारी है...पर...
मित्रों अफसोस इस बात का है
कि....विज्ञान और चिकित्सा में...
आज के युग में बड़ी मँहगाई है...
रुपये-पैसों को लेकर यहाँ....!
अव्वल दर्जे की बेहयाई है....
यहाँ प्रेम और विश्वास...दोनों ही..   
नितान्त अस्थाई हैं...जबकि....
पुराकाल से फुटकर..और...
बिना मोल मिलने वाला,
प्रेम और विश्वास ही...
आज भी एग्जाई और स्थाई है...!
प्रेम और विश्वास ही...
आज भी एग्जाई और स्थाई है...!

रचनाकार...
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद--कासगंज

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