घर चलाना चाहता हूं




समय का इतिहास लिखने, बैठ जाना चाहता हूं।
फिर से मैं अपनी धरा पर, स्वर्ग लाना चाहता हूं।।

हैं  बहुत  से भेद, उनको  दूर  करने  के लिए ही। 
सेवरी  के  घर  पहुंचकर, बेर  खाना  चाहता हूं।।

कायरों ने घेर कर  मारा, बहुत अभिमन्युयों को।
द्रोण  जैसे  हर  गुरु  को, मैं मिटाना चाहता हूं।।

सूर ने सम्राट से था कह दिया, कि मत बुलाना।
सूर्य  से साहित्य को मैं,  जगमगाना चाहता हूं।।

मित्रता की राह पर, मोहन-सुदामा चाहिए बस।
गीत अब रसखान के,केवल सुनाना चाहता हूं।।

इन गिरोहों से बचाओ राष्ट्र को, इस मुल्क को।
राम, ईसा और अल्ला को, सुलाना चाहता हूं।।

मर  गया  इंसान, जिन्दाबाद  सुनने  के  लिए।
अमरता के गीत फिर से, गुनगुनाना चाहता हूं।।

फिर  से  जिंदा  हो  गए  हैं, मारने वाले तुम्हें।
हे अहिंसा के पुजारी, फिर बुलाना चाहता हूं।।

इस  सनातन  धर्म  की गहराइयों पर,नाज है। 
प्रेम-गंगा  में  बहा,  पावन बनाना  चाहता हूं।।

कद बड़ा चौड़ा हो सीना, हांकने वाला नहीं।
लाल तेरी सादगी मोहक,सजाना चाहता हूं।।

राम तेरा घर बनाकर,क्या मिलेगा तुम बताओ।
युवकों को काम देकर,घर चलाना चाहता हूं।।..."अनंग"

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