राजकुमार गुप्ता
हम कहां थे,कहां हैं, कहां जा रहे हैं?
      
अपने ही अपनों से मुंह फुला रहे हैं,
छोटी - छोटी बातों पर,
        औकात दिखा रहे हैं,
अपनों से है गैरत,
          आनलाईन दोस्त,
लाखों बना रहे हैं,
 हम कहां थे, कहां हैं, कहां जा रहे हैं?
जब होते थे शिकवा,गर कभी अपनों से,
   अपने ही अपनों से,
कह-सुन लेते थे आप से,
        बड़ों से अदब था, 
लिहाज था बाप से,
    युवाओं को नवयुग का,ऐसा है खुमार
    किसी से अदब नहीं,खुल्लम खुल्ला व्यभिचार,
जब शरम और कुटुम्ब की टूट गई दीवारें,
      इतिहास गवाह है --
अपने ही अपनों को हैं मारे,
हम ये कैसा आशियाना बना रहे हैं?
हम कहां थे, कहां हैं, कहां जा रहे हैं?

      

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