केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम पो.-फरह-281122, जिला-मथुरा, भारत
गरीबी उन्मूलन और पोषण सुरक्षा में दुधारू बकरियों की उपयोगिता
मनीष कुमार चेटली एवं ए.के. वर्मा
निदेशक, वरिष्ठ वैज्ञानिक
“गरीब की गाय“ के रूप में परिभाषित बकरी, हमारी स्वतंत्रता के बाद से एक लंबा सफर तय कर चुकी है। आज इसका पालन-पोषण आर्थिक और पोषण संबंधी कारणों से सीमांत और सामाजिक रूप से कमजोर लोगों तक ही सीमित नहीं है,
बल्कि उद्यमियों और स्टार्ट-अप के माध्यम से बकरी रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आज, भारत में देश भर में फैली 37 नस्लों की लगभग 15 करोड़ बकरी जर्मप्लाज़्म का सबसे बड़ा संग्रह है। लगभग 3.3 करोड़ दुग्ध उत्पादक बकरियों के साथ, भारत सालाना 65 लाख टन से अधिक बकरी के दूध का उत्पादन करता हैै। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र शीर्ष पांच बकरी दूध उत्पादक राज्य हैं। बीटल, जमुनापारी, मालाबारी,
सिरोही, जखराना और सुरती बकरियों को दुधारू किस्म का जानवर माना जाता है। बकरी का दूध पोषक तत्वों से भरपूर संपूर्ण भोजन है जिसमें गोजातीय दूध की तुलना में कई महत्वपूर्ण पोषक अधिक अनुपात में पाये जाते हैं। इन बायोएक्टिव पोषक तत्वों में मध्यम-श्रृंखला ट्राइग्लिसराइड्स, पॉलीमाइन्स, मुक्त अमीनो एसिड, न्यूक्लियोटाइड्स, ओलिगोसेकेराइड्स, पेप्टाइड्स और खनिज, विशेष रूप से सेलेनियम शामिल हैं। स्वास्थ्य से
जुड़ी कई शारीरिक गतिविधियों में इन पोषक तत्वों के शामिल होने के प्रमाण मिले हैं। कई स्वास्थ्य समस्याओं के नियंत्रण और क्षीणन के लिए बकरी के दूध और इसके उत्पादों की चिकित्सीय उपयोगिता का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन कर उनका प्रकाशन किया गया है। वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि गाय के दूध की तुलना में बकरी के दूध के साथ शिशुओं को बेहतर स्वास्थ्य, शारीरिक मजबूती और बुद्धि प्रदान की जा सकती है।
हालाँकि भारत बकरी के दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन हमारा डेयरी बकरी क्षेत्र ज्यादातर असंगठित है जिससे दूध का संग्रह और आगे की प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है। इसके अतिरिक्त, हमारी बकरियां अपने यूरोपीय समकक्षों (1किग्रा से 3 किग्रा) की तुलना में कम मात्रा (470 ग्राम/दिन) का उत्पादन करती हैं। आंशिक रूप से इसका कारण हमारी बकरियों की कम उत्पादकता है क्योकि हमारा दूध उत्पादन के लिये अतिरिक्त प्रबंधन नहीं होता और और बकरी प्रमुखतः
शून्य-इनपुट प्रणाली में रखी जाती है। सहकारी प्रणाली ने भारतीय डेयरी क्षेत्र के विकास में अपनी क्षमता दिखाई है। एक ही छत्र के नीचे गैर-गोजातीय दूध का कवरेज उनके प्रचार में सहायक हो सकता है। हालांकि हमारी डेयरी सहकारी समितियां ऊंटनी के दूध के उत्पादन और प्रसंस्करण पर ध्यान दे रही हैं, लेकिन डेयरी बकरी क्षेत्र पर अभी भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारतीय डेयरी बकरी क्षेत्र को टिकाऊ और व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए हमें बेहतर देशी बकरियों के साथ गैर-वर्णित बकरियों (कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत) के उन्नयन, उत्पादकता में सुधार और संगठित बकरी फार्मों की स्थापना पर अधिक ध्यान देना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बकरी के दूध और दुग्ध उत्पादों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है और बकरी के दूध और बकरी चीज़ के बाजार का आकार क्रमशः लगभग 8.5 बिलियन अमरीकी डालर और 9.7 बिलियन अमरीकी डालर है।
दुनिया के बकरी के दूध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 29 प्रतिशत से अधिक होने के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय में हमारी उपस्थिति लगभग नगण्य है। देश में वाणिज्यिक डेयरी बकरी इकाइयों और बकरी के दूध के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन की कमी है। इसके अतिरिक्त, बकरी के दूध के बिक्री के लिए कोई निश्चित मूल्य निर्धारण प्रणाली नहीं है, और यह महानगरों में डेंगू बीमारी के दौरान ₹2000 प्रति लीटर तक पहुँच जाता है, जबकि सामान्य दिनों में इसकी कीमत ₹35-40 प्रति लीटर ही रहती है। वैश्विक बाजार में अपने आप को स्थापित करने के लिए भारत को डेयरी बकरी उद्योग की क्षमता का समुचित दोहन करना चाहिये। बकरी प्रजनन, पोषण, सहकारी समितियों और संघों की स्थापना, प्रसंस्करण और स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने से लेकर विपणन तक बकरी दूध वैल्यू चैन के विभिन्न स्तरों पर हमें सुनियोजित और समग्र तरीके से ध्यान देने की आवश्यकता है। डेयरी बकरी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक उपयुक्त नीति और नियामक हस्तक्षेप भी समय की आवश्यकता है।
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