जौनपुर। जन्मदिन विशेष- हिंदू इंटर कॉलेज के संस्थापक स्व: यमुना प्रसाद गुप्त
संस्थापक पौत्र वरिष्ठ पत्रकार बृजेश कुमार गुप्त की कलम से-
संस्थापक यमुना प्रसाद गुप्त जी का जीवन परिचय व हिंदू इंटर कालेज मुंगराबादशाहपुर का इतिहास-
मुंगराबादशाहपुर,जौनपुर। कर्म ही पूजा है, मां सरस्वती मंदिर की सेवा करना ही जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है। जीवन ही सत्यकर्म है। इस पर चल कर व्यक्ति समाज का शिरोमणि बन जाता है। इस दैवीय आर्ष वचन के कर्मफल के अटल सिद्धांत के अनुसार स्व: यमुना प्रसाद गुप्त विलक्षण प्रतिभा से मंडित व महामानव थे। ध्रुव सच है कि ईश्वरीय कृपा से ही विरले लोगों को ऐसा सौभाग्य मिलता है। मुंगरा बादशाहपुर नगर जिला जौनपुर की माटी में जमींदार परिवार में स्व द्भारिका प्रसाद के आंगन में स्व यमुना प्रसाद गुप्त का जन्म सन् 1898 में असाधारण प्रतिभा के रूप में हुआ था। अपनी युवावस्था से ही समाज हित में स्व श्री गुप्त जी ने पूरे मनोयोग के साथ अपने जीवन को समर्पित कर दिया था। 24 वर्ष की अवस्था में ही आपने नोटीफाइड एरिया के अध्यक्ष पद को अलंकृत किया। इस पद को तीन बार क्रमशः 1929, 1932, 1953 में वरण किया। जब क्षेत्र के होनहारों के लिए शिक्षा के संसाधन के रूप में यहां कोई व्यवस्था नही थी तो स्व श्री गुप्त जी ने शिक्षा की अखंड ज्योति को जलाने के लिए अविस्मरणीय भूमिका निभाई। उन्होंने बलवती अभिलाषा को लेकर 25 वर्ष की अवस्था में आपने सन् 1923 में एक विद्यालय का जन्म दिया जो कालान्तर में सन् 1948 में हिन्दू इंटर कालेज के नाम से जाना गया। स्व गुप्त जी उक्त विद्यालय के संस्थापक व 1971 तक आजीवन प्रबंधक रहे। उनका संस्थापकीय एवं प्रबंधकीय कार्यकाल बड़ा ही गौरव पूर्ण रहा। जो वर्तमान परिदृश्य में शिक्षा रुपी संवाहक के रूप में आज भी बना हुआ है। आपने अखिल भारतीय ओमर ऊमर वैश्य महासभा के चार बार राष्ट्रीय अध्यक्ष का गौरव प्राप्त किया कर चुके हैं। स्व गुप्त जी लगातार जिला परिषद के 12 वर्ष तक सम्मानित सदस्य तथा 12 वर्ष तक आनरेरी मजिस्ट्रेट रहे। उन्होंने ने छात्रों व क्षेत्र की जनता के लिए मां काली मंदिर परिसर के एक कक्ष में पुस्तकालय व वाचनालय खोल रखा था। राजकीय अस्पताल के पास श्री गुप्त जी ने एक गौशाला की स्थापना किया था। कालान्तर में उक्त गौशाला जो आज करोड़ों की संपत्ति के रूप में है। उसे नगर पालिका को सार्वजनिक कार्यों के करने के लिए दान दे दिया था। जिसे आज कब्जा करने के लिए भू माफियाओं की कुदृष्टि लगा हुआ है। वस्तुत: वे अपने में आदर्श थे, एक संस्था थे और बेलोश प्रखर वक्ता थे। आज भी वे लंबी अवधि के बाद भी अपने आदर्शों, मान्यवताओं एवम् सिद्धांतों के कारण समाज में जीवित हैं। उनका यश शरीर आज भी जीवित हैं। किसी ने ठीक ही कहा है" नश्वर शरीर यह माटी का है, माटी में मिल जाता है।"समर्पण वाला योगी ही युग युग पूजा जाता है।" स्वाभिमान उनके रक्त के एक एक कण में विद्यमान था।" एक दिन भी क्यो न जी पर ताज बन कर जी मत पुजारी बन भगवान बन कर जी " उनका अनुकरणीय संदेश था। उन्होंने अपने त्याग, तपस्या और बलिदान को कभी भुनाने का प्रयास नही किया है।बजो हारे नही, थके नही, झुके नही, सदैव चलते रहे। वे क्षेत्र के मदनमोहन मालवीय थे। ऐसे लोग बहुत मुश्किल से पैदा होते हैं। जो मरने के बाद भी अपनी एक कहानी व यादगार छोड़ जाते हैं। एक तारीख बना कर चले जाते हैं। श्री गुप्त जी ने पं मदनमोहन मालवीय जी के प्रेरणा से विद्यालय के आगे हिन्दू शब्द लगाया था। संस्थापक जी पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के बहुत करीबी थे। उन्होंने संस्थापक जी के भाषणों का बहुत ही तारीफ किया था। 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में संस्थापक जी के नेतृत्व में संस्था कूद पड़ी थी। जिसकी कीमत चुकानी पड़ी थी। इसका अतीत बहुत ही शानदार था।
उक्त विद्यालय में 5 फरवरी 1937 में मदनमोहन मालवीय,1940 में मैरिस हैलेट तत्तकालीन अंग्रेज गर्वनर, 7 अक्टूबर 1956 में तत्कालीन अ भा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ढेबर भाई, 28 अक्टूबर 1956 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का आगमन व अभूतपूर्व स्वागत हुआ था। इसके अतिरिक्त केशव देव मालवीय, तत्कालीन प्रदेश के मुख्यमंत्री सम्पूर्णानंद, पं रामनरेश त्रिपाठी, परिपूर्णा नंद, डॉ कैलाश नाथ काटजू सरीखे तमाम विद्धान व राजनेता आ चुके है। संस्थापक की स्वयं की पंक्ति" शानदार था भूत भविस्यति भी महान है अगर संभालने आप जो वर्तमान है।" विद्यालय के लिए बहुत ही चुनौती है। इसकों बहुत ही गंभीरता से लेना चाहिए। वर्तमान में इसका विकास बाधित हो चला है और यह संस्था दिशा विहीन हो चली है।इसको अब तक पी जी कालेज हो जाना चाहिए था। जो विधवा के रूदन के समान आज भी बना हुआ है। इसका पांच बीघा जमीन प्रबंधक स्व जयराम तिवारी ने अपने नाम करवा लिया है। जिसपर बालिका इंटर कालेज स्थापित है।उसका आय कहां जा रहा है? कालेज आज लूटेरों के लिए कामधेनु बना हुआ है। यह सब शिक्षा विभाग के भ्रस्ट अधिकारियों व अंधे व किंकर्तव्यविमूढ़ जनप्रतिनिधियों का खेल है। होनहार विरवान के होत चिकने पात के कथन को अक्षरशः सिद्ध करने वाले संस्थापक जी के सुयोग्य पुत्र स्व विनय कुमार गुप्त का शिक्षक व प्रधानाचार्यकत्व काल विद्यालय को याद गार के रूप में इतिहास के पन्नों में अविस्मरणीय बना दिया है। संस्थापक व पूर्व प्रधानाचार्य स्व विनय कुमार गुप्त के सपनों को पूरा करने के लिए शुभेच्छुओं को इसके लिए आगे आना होगा।स्व यमुना प्रसाद गुप्त प्रखर समाज सेवी, एक इतिहास पुरुष तथा देशानुरागी थे। उनके पदचिन्हों पर चलना ही पिता पुत्र के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। संस्थापक परिवार की ओर से हर वर्ष आठ फरवरी को विद्यालय परिसर में संस्थापक की जयंती मनाई जाती है।
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