राजकुमार गुप्ता
मुझे अपनी मूर्खता पर जब हँसी आती है ,तब जोर से आती है. मुझे चौथेपन में पता चला कि मंहगाई को लेकर आम आदमी ही नहीं भारतीय रिजर्ब बैंक भी चिंतित होती है और उसका अपने संतोष का भी एक स्तर होता है .संसद में अडाणी ,मोदी और राहुल गांधी की कांय-कांय के बीच किसी को पता ही नहीं चला कि देश में मंहगाई ने तीन महीने में एक और सीढ़ी पर कर ली .
हमारा भारत महान है क्योंकि इस देश में जिन मुद्दों पर बहस होना चाहिए ,उनके ऊपर बहस होती नहीं है और उन मुद्दों पर बहस होती है जिनका कोई मतलब नहीं होता .हमारी संसद ने अडानी पर बहस की मांग की तो हंगामा हुआ .राष्ट्रपति के अभिभाषण पर उत्तर देने के बजाय प्रधानमंत्री जी ने प्रतिप्रश्न किये कि लोग ' नेहरू ' सरनेम का इस्तेमाल क्यों नहीं करते ? किसी ने नजीर को राज्यपाल बनाने पर बहस नहीं की.मंहगाई पर बहस नहीं की .क्योंकि सब जानते हैं कि बहस से देश विश्वगुरू नहीं बनता ,उलटे बहस करने से देश की ,देश कि नेताओं की ,संसद की, लोकतंत्र की फजीहत होती है .
बात मंहगाई की कर रहा था. आपको पता है कि देश में नया साल शुरू होते ही मंहगाई की दर बढ़ गयी और थोड़ी-बहुत नहीं बल्कि 6 .52  फीसदी  बढ़ गई .अर्थशास्त्री इस दर को उच्चतम मानते हैं .ये दर भारतीय रिजर्ब बैंक के  संतोष के  स्तर से भी ज्यादा है इसलिए कहते हैं कि भारिबैं भी तनाव में है .मंहगाई की वजह से आम आदमी तो दशकों से तनाव में है,लेकिन यदा-कदा ये तनाव बैंकों को  भी होता है .बैंकों को जब तनाव होता है तब मान लीजिये कि सचमुच मामला गंभीर है .
मंहगाई बीते साल यानी 2022 की जनवरी में 6.01 फीसदी थी ,उससे पहले दिसंबर में 5 .72  फीसदी थी .मजे की बात ये है कि  मंहगाई की मार सबसे ज्यादा खाद्य पदार्थों पार पड़ती है .आम आदमी बिना खाये तो ज़िंदा नहीं रह सकता इसलिए चुपचाप मंगाई को बढ़ते हुए देखता रहता है .देश की 140  करोड़ आबादी में से 80  करोड़ को तो सरकार मुफ्त का अन्न देती है इसलिए माना जाता है कि  खाद्य पदार्थों कि मंहगे होने से उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता,फर्क पड़ता है शेष 60  करोड़ लोगों पर जो मुफ्त का अन्न नहीं खाते .
मंहगाई इतने दबे पांव बढ़ती है की आपको भनक तक नहीं होती . अब अनाज और दीगर उत्पादों पर मंहगाई 16  फीसदी से ज्यादा बढ़ गयी है,क्या आपको इसका पता चला ? अण्डों,दूध और मांस की कीमतों में 6  से 9 फीसदी का इजाफा हो गया ,किसी ने चिल-पों की ? नहीं की ,क्योंकि आम आदमी जानता है कि मंहगाई पर किसी का जोर नहीं होता.पहले ' इश्क पर जोर नहीं ' होता था,अब ' मंहगाई पर जोर नहीं ' होता .मंहगाई हमारे नेताओं की तरह मुंहजोर होती है. मंहगाई ने सब्जियों को बख्श दिया लेकिन मसालों की ऐसी-तैसी कर दी. मसाले 21 .09 फीसदी तक मंहगे हो गए .
अब ये सरकार की नहीं बल्कि केंद्रीय बैंक यानि रिजर्ब बैंक की ड्यूटी है कि इस मंहगाई  को चार फीसदी से ऊपर न जाने दे,लेकिन बेचारी रिजर्व बैंक अकेली क्या कर सकती है जबकि मंहगाई बढ़ाने   वाले दूसरे लोग हैं .वे लोग हैं जिनके बारे में संसद   में हंगामा तो होता है लेकिन बहस नहीं .बैंक बढ़ती मंहगाई को लेकर केवल चिंता जता सकती है ,सो जताती है .बाकी सब ऊपर वाले के ऊपर छोड़ देती है. क्योंकि बेलगाम मंहगाई की लगाम भगवान ही खींच सकता है,सरकार नहीं.सरकार तो सिर्फ एक इंजन में एक और इंजन लगा सकती है.
मंहगाई को लेकर अब आम जनता ने विरोध करना छोड़ दिया है. जनता अब सड़कों पर नहीं उतरती .सड़कों पर नेता उतरते हैं. राजनीतिक कार्यकर्ता जरूर जंतर-मंतर पर मंहगाई के खिलाफ धरना-वरना दे देते हैं किन्तु इससे मंहगाई पर कोई असर नहीं होता .मंहगाई अपनी चाल से बढ़ती जाती है,बढ़ती जा रही है .मंहगाई की वजह से आम आदमी को दिन में तारे नजर आ रहे हैं ,लेकिन बेचारा भक्तिभाव में डूबा है. राष्ट्रवाद उसे आंदोलित होने से रोकता है. मंहगाई के खिलाफ सड़कों पर आना राष्ट्रद्रोह है .सड़कों पर आकर कौन राष्ट्रद्रोही बने ?
असली सवाल ये है कि मंहगाई को आखिर किसका संरक्षण हासिल है ? कौन है जो मंहगाई के बढ़ने से खुश और लाभान्वित होता है ? मंहगाई बढ़ाने वालों का पता लगाने के लिए कभी संसद में जेपीसी के गठन की मांग नहीं की जाती .संसद में मांग करने से होता भी क्या है ? पूरा विपक्ष सरकार से अडानी भाई साहब के खिलाफ जेपीसी से जांच करने की मांग कर रहा  है ,किन्तु सरकार ने ये मांग नहीं मानी .हंगामा होने दिया .मांग मांगने से ज्यादा बेहतर और आसान हंगामे का सामना करना है .देश में एक अकेला और निरीह आदमी इस हंगामे से जूझ रहा है .हमें इस अकेले आदमी पर गर्व करना चाहिए .देश में ऐसा अकेला आदमी पहले कभी देखने में नहीं आया .पहले पूरी सरकार विपक्ष और दूसरी समस्याओं से निबटती थी .अब एक अकेले को ये सब करना पड़ रहा है.जाकिट शाह तक का अब अता-पता नहीं है .
दरअसल मंहगाई निराकार है,इसीलिए उसे स्पर्श नहीं किया जा सकता,उसके दर्शन नहीं किये जा सकते,उसे केवल अनुभव किया जा सकता है .मंहगाई को ज्यादा से जायदा उन आंकड़ों के जरिये जाना जा सकता है जो येनकेन बाहर आ जाते हैं . आँकड़े देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से परेशान करने वाले हैं. पिछले साल अप्रैल महीने में थोक महंगाई सूचकांक (डब्लूपीआई) 15.08  फीसदी रहा जो नौ साल में सबसे अधिक है.थोक मंहगाई सूचकांक बीते 13 महीनों से डबल डिजिट यानी दहाई की रफ़्तार पकड़े हुए है. ये दर बीते नौ साल में सबसे ऊंचे स्तर पर है.अब है तो है ,सरकार क्या करे ?
बढ़ती मंहगाई के लिए आप सरकार को छोड़ किसी को भी जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. रूस और यूक्रेन की जंग को या भयंकर गर्मी को .कोई कुछ कहने वाला नहीं है. .मंहगाई का असर आपकी जेब पर सीधे पड़ता है. आपके सामने दो ही विकल्प हैं कि या तो चुपचाप अपनी जेब कटवाते रहिये या फिर सड़कों पर उतरिये .सड़कों पर उतरने में आपको शर्म आती है इसलिए जेब कटवाना ही पहला और अंतिम विकल्प है .
हमारी सबसे बड़ी बैंक की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत की महँगाई दर काबू में करने में वक़्त लग सकता है.
यानी आपकी जेब पर जो दबाव पड़ रहा है वो आने वाले दिनों मे आपकी जेब को और हल्का ही करेगा.तेज़ी से बढ़ती महँगाई को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने  रेपो रेट फिर बढ़ा दी . इस वजह से आपका कार, होम और पर्सनल लोन महँगा हो गया और टापते रह गए. आप रिजर्ब बैंक का हाथ तो नहीं पकड़ सकते .काश की मंहगाई की ठठरी बांध जाये. बुंदेलखंड का शस्त्री बाबा मंहगाई की ठठरी बांध दे .सरकार के और आम जनता के बूते का तो कुछ है नहीं.

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