बहराइच:- मिटाने फेफड़ों का दाग अनामिका दे रहीं हैं टीबी मरीजों का साथ

महज दो माह की अवधि में 100 मरीजों की कर चुकी हैं काउन्सलिन्ग 

राम कुमार यादव




बहराइच (ब्यूरो)जनपद सहित पूरे देश को टीबी मुक्त करने के लिए युवा भी आगे आ रहे हैं । परास्नातक की पड़ाई पूरी कर चुकी 22 वर्षीय अनामिका इनमें से एक हैं। टीबी बीमारी से ठीक होने के बाद अनामिकाटीबी मरीजों को हर वह छोटी,बड़ी बात समझाती हैं जो उनके लिए जरूरी होता है। हाल ही में इनके प्रयास से इलाज छोड़ चुके तीन गंभीर टीबी मरीजों ने पुनः दवाओं का कोर्स करना शुरू कर दिया है। बहराइच के टीबी सर्वाइवर के रूप में अनामिका वर्डविजन संस्था से जुड़कर टीबी मरीजों के इलाज की राह आसान कर रही हैं । इसकी प्रेरणा उन्हे टीबी अस्पताल में कार्यरत सीनियर ट्रीटमेंट लाइब्रेरी सुपरवाइजर राजेश श्रीवास्तव से मिली। रिसिया के राजेन्द्र्नगर निवासी अनामिका बीते साल की शुरुआत में टीबी बीमारी से पीड़ित हो गयी थीं। साधारण सर्दी जुकाम से शुरू हुई समस्या के दौरान खांसी बढ़ गयी जो ठीक नहीं हो रही थी। प्रतिदिन शाम को बुखार व खून में हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर कमजोर हो गया । ऐसे में इलाज कर रहे होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह से टीबी अस्पताल में बलगम की जांच हुई तो फेफड़े की टीबी निकली। लगभग छह माह तक निरंतर दवाओं के सेवन से स्वस्थ हो गईं। बक़ौल अनामिका उन्हें इलाज के दौरान भूख नहीं लगती थी लेकिन माँ के समझाने पर वह थोड़ा-थोड़ा भोजन दिन में कई बार करती थीं। उन्हें भीगे चने व मूंग खाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था लेकिन बीमारी से उबरने के लिए वह इसे रोज सुबह नाश्ते में खाती थीं। अनामिका कहती हैं कि बीमारी से उबरने में उसकी छोटी बहनों ने हर कदम पर उसका साथ दिया । बिस्तर की चादर बदलना हो या कमरे की साफ सफाई करनी हो,उसके कपड़े धुलने हों या समय से नाश्ता या भोजन देना हो वह हर पल उसके साथ रहीं । ``इसके अलावा जो सबसे ज्यादा जरूरी था कि रोज समय से दवा खिलाना मेरी बहने कभी नहीं भूलती थीं। सबके प्रयास और लगातार छह माह तक बिना हर्जा किए दवाओं के सेवन से मैं टीबी मुक्त हो गयी। इस दौरान मुझे निक्षय पोषण योजना के तहत प्रतिमाह  500 रुपए भी प्राप्त हुए,’’वह कहती हैं । आसान नहीं है टीबी उन्मूलन की राह –अनामिका कहती हैं टीबी के लक्षण वाले व्यक्तियों को जांच कराने के लिए प्रेरित करना आसान नहीं होता है। नाम न बताते हुए वह कहती हैं कि गांव के एक व्यक्ति को पिछले एक माह से खांसी व बुखार की समस्या है। उनसे जब टीबी की जांच कराने लिए कहा तो वह बुरा मान गए। हालांकि कई बार कहने के बाद वह अस्पताल तक तो आए लेकिन बिना जांच कराये ही वापस लौट गए। वह यह मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि उन्हें भी टीबी हो सकती है। अनामिका कहती हैं कि टीबी उन्मूलन की राह में यह सबसे बड़ी बाधा है । पापा बने परिचायिका–अनामिका कहती हैं कि इलाज के दौरान उसके पापा की भूमिका वह कभी नहीं भूल सकती। ``मेरी दवा, जांच व अस्पताल ले जाने के अलावा वह रोजाना राख़ से भरा टब रात में मेरे बेड के पास रख देते थे और सुबह इस राख को एक गड्ढे में मिट्टी से पाट देते थे जिससे खांसने से निकलने वाला बलगम इधर-उधर न फैले। यह सुझाव उन्हें डॉक्टर ने बताया था। डॉक्टर ने यह भी कहा था कि इलाज के दौरान मैं अपना झूठा किसी न दूँ। परिवार के इस सहयोग से मैं तो इस बीमारी से उबर ही गयी साथ में अपनायी गयी सावधानी से घर व आस-पास के लोग बीमारी से सुरक्षित रहे,’’ वह बताती हैं। अब टीबी इलाज का पक्का वादा - अनामिका ने डॉक्टर से एक बार पूछा कि क्या वह ठीक हो जायेगी तो उन्होंने कहा:``टीबी का इलाज अब पहले जैसा नहीं रहा। सभी सरकारी अस्पतालों में टीबी की सबसे अच्छी दवाएं व जांच की आधुनिक मशीने उपलब्ध हैं। सही जांच व दवाओं के सेवन से जनपद में 84 फीसदी मरीज टीबी बीमारी से मुक्त हो जाते हैं। इस बीमारी में सिर्फ वही मरीज गंभीर होते हैं जो बीच में इलाज छोड़ देते हैं । इसलिए घबड़ाने की जरूरत नहीं है,’’ वह बताती हैं ।बीमारी से उबरने के बाद अनामिका सैकड़ों टीबी मरीजों के लिए रोलमॉडल बन चुकी हैं। टीबी अस्पताल के एसटीएलएसराजेश श्रीवास्तव बताते हैं कि अनामिका के प्रयास से बीते 15 दिसंबर को निक्षय दिवस पर दो पुरुषों सहित टीबी से पीड़ित 35 वर्षीय महिला का इलाज फिर से शुरू हो गया। इसके अलावा वह टीबी मरीजों को खानपान,
रहन-सहन,निक्षय योजना का लाभ आदि की जानकारी देकर उन्हें निरंतर दवाओं के सेवन के लिए प्रेरित करती हैं।वह मरीजों को बताती हैं कि दवाओं के सेवन से दस्त,उलझन, घबराहट जैसी जो चुनौतियां उनके सामने है उन्हीं चुनौतियों को पार करके वह ठीक हुई हैं।

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