वरदान मांगूंगा नहीं ,ये हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है, तिल तिल मिटूंगा पर दया की भीख मैं लूंगा नहीं , वरदान मांगूंगा नहीं, स्मृति सुखद प्रहारों के लिए ,अपने खंडहरों के लिए , यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूंगा नही , वरदान मांगूंगा नहीं वरदान मांगूंगा नहीं। क्या हार में क्या जीत में , किंचित नहीं भयभीत मैं , संघर्ष पथ पर जो मिले , यह भी सही वह भी सही , वरदान मैं मांगूंगा नहीं , लघुता न अब मेरी छुओ , तुम हो महान अब बने रहो , अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं ,वरदान मांगूंगा नहीं, चाहे हृदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो, कुछ भी करो कर्तव्य पथ से , किंतु भागूंगा नहीं ।🙏🙏💐💐💐💐 💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷💐💐💐💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏
*अयोध्या, हे--प्रभु , कर्तव्य पथ से मैं भागूँगा नहीं, निरन्तर ही चलना है---एक प्ररेणात्मक कविता*
Dr. Alok Kumar Srivastav
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