(अच्छा लगे, तो मीडिया के साथी *राजेंद्र शर्मा* का यह व्यंग्य ले सकते हैं। सूचित करेंगे, तो खुशी होगी।)
*इज्जत के रंग! बेशर्मी के रंग!!*
*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
भाई बड़ा कन्फ्यूजन है। ये केसरिया रंग की इज्जत बचाने के लिए किस को थैंक यू देना है? मध्य प्रदेश वाले पं. नरोत्तम मिश्र को -- बेचारे को चिकित्सा शिक्षा से लेकर गृह तक, न जाने कितने मंत्रालयों को अनाथ छोडक़र, खासकर फिल्म और टीवी वालों से और हां विज्ञापनों से भी, हिंदुओं की भावनाओं वगैरह की हिफाजत करने के लिए, हर हफ्ते-दो-हफ्ते पर लट्ठ चलाना पड़ता है। पता नहीं मध्य प्रदेश की मामा सरकार कब उनकी असली प्रतिभा पहचानेगी और मिश्रा जी के लिए अलग से हिंदू रक्षा मंत्रालय बनवाएगी? वैसे हिंदू रक्षा मंत्रालय के नाम से किसी के पौरुष पर चोट पहुंचती हो, तो हिंदू रक्षा मंत्रालय के नाम में धर्म या भावना की पूंछ भी जोड़ी जा सकती है।
या साध्वी प्रज्ञा जी को थैंक यू देना है? बेचारी ने केसरिया रंग की इज्जत बचाने के लिए, अपनी उस बीमारी तक को भुला दिया, जिसकी वजह से कई साल से भोपाल से मुंंबई तक नहीं जा पायी हैं और मालेगांव बम विस्फोट का मामला अदालत में पड़ा उनके इंतजार में सूख रहा है, कि साध्वी आएं, तो बम फोडऩे के किस्से को आगे बढ़ाएं। व्हील चेयर तक भूल गयी, याद रही केसरिया रंग की इज्जत। नरोत्तम मिश्र अगर सफेद वगैरह धारी होकर, पठान फिल्म पर पाबंदी लगाने की धमकी दे सकता है, तो साध्वी तो खुद केसरियाधारी ठहरीं। सभी हिंदुओं से अपील कर मारी -- असली हिंदू हैं, तो पठान फिल्म न खुद देखें और न दूसरों को देखने दें!
वैसे थैंक यू पर कुछ दावा तो मुंंबई के भगवा पार्टी के नेता, राम कदम जी का भी बनता है। इक्कीसवीं सदी में, नया कालीदास बनकर दिखा रहे हैं -- मुंबई में रहते हैं और मुंबई सिनेमा की जड़ पर उस्तरा चला रहे हैं।
वैसे हम तो कहते हैं कि इसको थैंक यू, उस को थैंक यू, इन सब झगड़ों में पडऩा ही क्यों? एक को थैंक यू दो, बाकी दस नाराज। क्यों नहीं सीधे मोदी जी को ही थैंक यू दे दें। जैसे हाथी के पांव में सब का पांव, वैसे ही मोदी जी के थैंक यू में सब का थैंक यू। मोदी जी के राज में वैसे भी सब को एक करने पर जोर है -- जीएसटी वाले एक टैक्स के बाद, एक फोटो तक बात पहुंच चुकी है। देखा नहीं कैसे गुजरात से हिमाचल और दिल्ली तक, भगवाइयों की तरफ से एक ही फोटो थी। फिर एक ही थैंक यू भी क्योंं नहीं? वैसे भी असली थैंक यू तो मोदी जी का ही बनता है। दुनिया में न सही, देश में भी न सही, कम से कम भगवा कुनबे में तो जो भी होता है, उनकी इजाजत से ही होता है। जिन मोदी की इजाजत के बिना पत्ता तक नहीं हिलता, उनकी इजाजत के बिना नरोत्तम मिश्रा सरकारी लट्ठ कैसे निकाल लाएंगे या साध्वी के संदेश कैसे प्रसारित हो जाएंगे या रामकदम कैसे...? सो इधर-उधर वालों को थैंक यू क्यों देना, जब असली कर्ता थैंक यू लेने को तैयार है और वह भी चौबीसों घंटा।
फिर मोदी जी का थैंक यू तो इसलिए भी बनता है कि केसरिया रंग की इज्जत बचाने का परमानेंट इंतजाम तो वही करा सकते हैं। अब कब तक बेचारे मिश्रा जी, बेचारी साध्वी जी, वगैरह जी लोग, रोज-रोज कभी किसी फिल्म वाले के पीछे, तो कभी टीवी वाले के पीछे, तो कभी किसी पत्रकार के पीछे, तो कभी किसी लेखक के पीछे डंडा लेकर पड़े रहेंगे। हिंदू हृदय सम्राट की सरकार में क्यों न पक्का काम कर दिया जाए -- हिंदू को राष्ट्र धर्म घोषित करने में अभी देर सही, तब तक कम से कम हिंदू रंग, केसरिया को तो राष्ट्रीय रंग घोषित कर दिया जाए। फिर राष्ट्रध्वज वाला प्रोटोकॉल खुद–ब–खुद लग जाएगा ; न बिकनी में, न साड़ी में, कोई भी कलाकार केसरिया पहनकर, रंग को बेशर्म नहीं कह पाएगा। कह दिया, तो सीधा जेल जाएगा! हां! चिन्मयानंद के केसरिया रंग की बात कोई नहीं करेेगा। वो तो वैसे भी अभी आफीशियली तो फरारी में हैं।
*(व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और ’लोकलहर’ के संपादक हैं।)*
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