बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन‘ एवं धर्मवीर भारती की स्मृति में राष्ट्रीय संगोष्ठी
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, शकुंतला सिरोठिया एवं विनोद चन्द्र पाण्डेय
‘विनोद‘ का स्मरण
लखनऊः 14 दिसम्बर, 2022
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन‘ एवं धर्मवीर भारती की स्मृति में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन आज से हिन्दी भवन यशपाल सभागार में किया गया। संगोष्ठी में अतिथि के रूप में श्री पद्मकान्त शर्मा ‘प्रभात‘, डॉ0 रमेश प्रताप सिंह, श्री नागेश पाण्डेय ‘संजय‘ , डॉ0 सुरेन्द्र विक्रम, श्री भैरूलाल गर्ग, उपस्थित थे। कार्यक्रम में वाणी वंदना सुश्री कामनी त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत की गयी।
डॉ0 रमेश प्रताप सिंह ने कहा कि धर्मवीर भारती के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भारती जी में परम्परा भी है आधुनिकता भी है। परम्परा के साथ नवीनता का सामंजस्य करने वाला रचनाकार ही कालजयी रचनाकार होता है। भारती जी ने साहित्य की हर विधा पर गहरी छाप छोड़ी है। भारती पर छायावाद व हालावाद का प्रभाव रहा है।
उन्होंने ने कहा कि ‘गुनाहों का देवता‘, ‘अंधायुग‘, ‘कनुप्रिया‘ जैसी रचनाओं की सुप्रसिद्ध रचनाओं में गिनती की जाती है। वे प्रेम व प्रणय के प्रधान रचनाकार हैं। ‘गुनाहों का देवता‘ रचना में प्रेम कि पराकष्टा परिलक्षित होती है। वे चिन्तनशील कवियों में हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम प्रधान तत्वों का समावेश मिलता है। ‘अंधायुग‘, काव्य नाटक भारती जी की महाभारत पर आधारित रचना है। सुश्री रागिनी सिंह व रोशनी लोधी ने धर्मवीर भारती की रचना ‘गुनाहों का देवता‘ के अशों का पाठ किया।
श्री पद्मकान्त शर्मा ‘प्रभात‘ ने बालकृष्ण शर्मा नवीन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर बोलते हुए कहा कि नवीन जी की रचनाएं सामाजिक चेतना जागृत करती हैं। उनकी रचनाओं में भारतीय समाज परिलक्षित होता हैं वे क्रांतिकारी कवियों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। वे मनुष्यता व एकता के साक्षात प्रतीक थे। उनका जीवन व लेखन कार्य क्रांतिकारियों, कवियों, लेखकों, पत्रकारों के बीच व्यतीत हुआ। ‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ उनकी सुप्रसिद्ध कविता है। उनका राष्ट्रीय एकता के लिए विपुल अवदान रहा है। नवीन जी ने अपनी रचना के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का अलख जगाया। उनकी रचनाओं में पूरा भारत व भारतीयता दिखायी देती है। खुशी सखूजा ने बाल कृष्ण शर्मा ‘नवीन‘ की सुप्रसिद्ध कविता ‘क्रांति‘ का पाठ किया।
श्री नागेश पाण्डेय ‘संजय‘ ने विनोद चन्द्र पाण्डेय ‘विनोद‘ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर बोलते हुए कहा कि विनोद चन्द्र पाण्डेय की गणना सहज कवियों में की जाती है। बाल साहित्य रचना के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। वे बाल साहित्य के बहुत बड़े समीक्षक रहे। वे छोटे से छोटे रचनाकारों से भी बड़ी आत्मीयता से मिलते थे। उन्होंने नये-नये बाल साहित्यकारों को जोडा। उनका व्यक्तित्व काफी विराट था। ‘बाल साहित्य का इतिहास‘ उनकी प्रमुख रचनाओं मंे से हैं। उनकी रचनाएं मौलिकता पर आधारित रही है। वे सफल संपादक रहे। उन्होंने यह भी कहा कि बाल साहित्य, बाल पत्रिकाएं विद्यालयों में अनिवार्य की जानी चाहिए। ‘ महापुरुषों की जीवनियाँ‘ आदि उनकी प्रमुख रचनाएं है। साहित्य के सिद्धान्तों की झलक भी बाल साहित्य में मिलती है।
डॉ0 सुरेन्द्र विक्रम ने कहा कि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी ‘यदि होता किन्नर नरेश मैं राजमहल में रहता, सोने का सिंहासन होता सिर पर मुकुट चमकता.... कविता लिखकर बाल मन पर गहरी छाप छोड़ती है। उनकी रचनाओं में प्रकृति, शिक्षा, बाल, समाज विषयों का सबका समावेश मिलता है। वीर तुम बढ़े चलो.... जैसी कविताओं के रचयिता माहेश्वरी जी बाल साहित्य के पुरोधाओं में हैं। उन्होंने प्रबंध काव्यों की भी रचना की।
राजस्थान से पधारें श्री भैरूलाल गर्ग ने शकुंतला सिरोठिया के बाल साहित्य सृजन पर बोलते हुए कहा कि बाल साहित्य जगत में शकुन्तला सिरोठिया का स्थान अग्रणी पंक्ति में आता है। वे सहज बाल रचनाकार रहीं। पारिवारिक विसंगतियों का चित्रण उनके बाल साहित्य में मिलता है। बाल कहानी, बाल नाटक आदि पुरस्कार भी उनके नाम से प्रदान किये जाते हैं। उनका बाल साहित्य लोरियों से भरा हुआ है। उनका मानना था कि लोरी के माध्यम से माँ बालक का बचपन संवारती है। बच्चों को लोरी ममता का परिचायक है। माँ बालक के सुखद जीवन की कामना करती है। उनकी बाल कविताएं व लोरियाँ सहज व संप्रेषणीय बनाती हैं। वात्सल्य भाव ही उनकी रचनाओं की विशेषता है।
डॉ0 अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया।
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