गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन।
उत्तर भारत के प्रसिद्ध जैन संतो में शुमार ऐल्लक श्री 105 विज्ञान सागर जी महाराज कई महीनों से जैनियों के सबसे बड़े तीर्थ सम्मेद शिखर जी को बचाने के लिए प्रयासरत है और अपनी और से हर सम्भव कोशिश कर रहे है। सम्मेद शिखर जी को बचाने के लिए वह बढ़ती शीत लहर के बाबजूद भी मंड़ोला के जय शांति सागर निकेतन से दिल्ली तक पैदल मार्च कर चुके है और दिल्ली के रामलीला मैदान में देशभर से पहुॅंचे जैन समाज के लोगों से सम्मेद शिखर बचाने के लिए प्रार्थना चुके है। वर्तमान में सम्मेद शिखर जी को बचाने के लिए उनकी एक कविता बड़ी तेजी के साथ वायरल हो रही है, जिसमें ऐल्लक श्री 105 विज्ञान सागर जी महाराज बोल रहे है कि उठो जैनियों नींद से जागो अब समय नही है सोने का, अब सो गये तो नही जगोगे वक्त नही अब खोने का। सम्मेद शिखर अब बुला रहा है रक्षा के हेतु को, जिस प्रकार समुद्र बुलाया रामचन्द्र को सेतु को। तीर्थ हमारी आन बान है जैनियों का मान है, सरकार झुकेगी प्रण हमारा सम्मेद शिखर अरमान है। मुनिजन हमको बुला रहे है पारस का हमें सहारा है तीर्थ बचाओ धर्म बचाओ यही हमारा नारा है। सम्मेद शिखर को मिट जायेंगे दूजा गिरनार ना होगा ये, उठो जैनियों आग लगा दो पूरा ब्रहाण्ड गुंजा दो ये। बच्चा-बच्चा निकल पड़ेगा सम्मेद शिखर को पाने को, फिर सरकारें हाथ मलेंगी जनता को समझाने को। मोदी सरकार आज समझ लो, झारखण्ड़ को समझा दो तुम, फिर ना कहना सुनो जैनियों मत उत्पात मचाओ तुम। जैनियों की सहनशीलता देखी होगी सड़को पर, अब आक्रोश भी देखोगे, गांव-गांव की सड़को पर सरकारों से कहना इतना, सम्मेद शिखर को वापस दो। आधा नही पूरा चाहिए, कागजों पर लिखकर दो। हम सबका सम्मान करते हमको ना ललकारो तुम, जैन अगर मचल गया तो फिर भूकंप को देखो तूम। ऐल्लक श्री 105 विज्ञान सागर महाराज ने कहा कि धर्मो रक्षति रक्षित् अर्थात धर्म की रक्षा करने पर रक्षा करने वाले की धर्म रक्षा करता है। हमारा अस्तित्व हमारे तीर्थो, मंदिरों, साधु-संतो से है। सरकार के गलत फैसलों के कारण हम अपना गिरनार जी जैसा एक बड़ा तीर्थ खो चुके है अगर हम अब भी नही जागे तो सम्मेद शिखर जी को भी खो बैठेंगे। कहा कि जैन धर्म अहिंसा का समर्थन करता है एक चींटी और ना दिखने वाले जीवों तक की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। अगर इस शिक्षा को देने वाले हमारे धर्म के अस्तित्व पर ही संकट आ जाये और धीरे-धीरे उसको समाप्त करने की दिशा में कार्य किया जा रहा हो तो आने वाले पीढ़ियों को किस प्रकार अहिंसा की शिक्षा देने वाले तीर्थो, मंदिरों और ग्रंथो के दर्शन करा पायेंगे। वर्तमान में संसार और अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए हमारा परम कर्त्तव्य है कि हम अपने तीर्थो और धर्म की रक्षा के लिए हर सम्भव प्रयास करे। अब समय हर कीमत पर धर्म की रक्षा करने का है ना कि सोने का।
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