प्रयागराज। जन्मदिन 15 दिसंबर पर विशेष
बाल साहित्य की साम्राज्ञी महीयसी शकुंतला सिरोठिया
डॉ० भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज। हिंदी साप्ताहिक नवांक में सह संपादक के रूप में नवंबर 1983 में मैं कार्यरत हो चुका था और उसी समय मुझे विभिन्न साहित्यकारों कवियों लेखकों और पत्रकारों से साक्षात्कार के लिए अधिकृत किया गया था। नवंबर के अंतिम सप्ताह में एक समाचार प्रकाशन हेतु आया जिसमें श्रीमती शकुंतला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार पर प्रविष्टियां आमंत्रित की गई थीं। मेरे संपादक पंडित परमानंद मिश्र ने अपने कक्ष में मुझे बुलाकर विशेष रूप से बताया कि यह समाचार प्रमुखता से प्रकाशित होना चाहिए और आप समय निकालकर श्रीमती सिरोठिया जी के यहां जाकर उनसे भेंट कर लीजिएगा। मुझे तो मुंह मांगा वरदान मिल गया था और मैं समाचार को विधिवत पृष्ठ पर लगाने के लिए पृष्ठ सज्जाकार को अनुरोध करने के पश्चात उसी दिन शाम को बाई का बाग स्थित श्रीमती शिरोठिया जी के आवास पर पहुंच गया। गुलाबी ठंड में वे अपने साहित्य लेखन में संलग्न थीं। द्वार पर किसी आहट को अनुभव करके उन्होंने पूछा -
कोई है क्या ?
मैंने निवेदन किया -
मैं भगवान उपाध्याय हूँ साप्ताहिक नवांक से आया हूंँ।उन्होंने स्वयं उठकर द्वार पर आकर मृदु मुस्कान के साथ स्वागत किया और सामने बैठने का आग्रह करते हुए सबसे पहले कुशल छेम पूंछी, फिर उन्होंने अपनी बड़ी बहू को आवाज देकर कहा एक चाय और बढ़ा लेना कुछ जलपान के लिए भी यहां पहले दे जाओ। साक्षात सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख अभिभूत होकर बैठा मैं उनकी उदारता और आत्मीयता से तृप्त होकर स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली होने का अनुभव कर रहा था। कुछ ही क्षण के पश्चात एक संभ्रांत स्वर्णमयी आभा लिए अति गौरांग महिला ने सामने तिपाई पर पानी भरा गिलास और मिष्ठान रखकर नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ लिए। मैं भी उनके पैर छूकर प्रणाम करने के पश्चात बैठा तो श्रीमती शिरोठिया जी ने परिचय दिया - यह मेरी बड़ी बहू रामेश्वरी सिरोठिया है और यह भगवान उपाध्याय हैं सप्ताहिक नवांक से आए हैं मिश्रा जी ने भेजा है। मातृत्व भाव की संपूर्णता के साथ उन्होंने मुझे जलपान करने का आग्रह किया, इसके पश्चात चाय भी आ गई थी। अब उन्होंने पूछा - मेरा समाचार मिल गया क्या ? मैंने कहा - जी माताजी , आज ही मिश्रा जी ने दिया और आपसे मिलने का आदेश भी इसलिए आपका आशीर्वाद लेने मैं चला आया। मैं यहीं नेता नगर चौराहे पर वैद्य जी के मकान में रहता हूं और 11:00 बजे सुबह से शाम 5:00 बजे तक कार्यालय में रहता हूं। यह जानकर के कि यह लड़का पड़ोस में ही रहता है वह बहुत आह्लादित हो उठीं और उन्होंने कहा सुबह शाम समय निकाल कर मुझसे मिला करो कुछ संस्था का भी सहयोग करो।
क्या क्या लिखते हो?
उनके आदेश को मैं अनुशासित छात्र की भांति स्वीकार करके बोल उठा - ठीक है मैं आऊंगा तो कुछ ना कुछ सीखने को ही मिलेगा। मैं गीत कविता कहानी बच्चों की कुछ कविताएं और साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ा समाचार लिखता हूं। मेरी भी एक त्रैमासिक पत्रिका साहित्यांजलि के नाम से जनवरी 81 से ही निकलती है,जो पूर्णत: साहित्यिक है। कल मैं आपकी सेवा में उसे लेकर आऊंगा। कुछ देर तक साहित्यिक चर्चा परिचर्चा के बीच मेरे व्यक्तिगत जीवन के बारे में भी उन्होंने जानकारी ली और अपने दोनों बेटों आदरणीय सुरेन्द्र जी और प्रोफेसर नरेंद्र नाथ सिरोठिया जी से भी परिचय कराया। उनके बड़े पौत्र टिक्कू भाई ( पावन सिरोठिया) भी वहां थे, उनसे भी मेरा परिचय हुआ। फिर बाद में नानू और मोनू जी से भी परिचित हुआ। कुछ देर के बाद मैं वहां से अपने कमरे पर चला आया और उनके विशिष्ट वैदुष्य को मन ही मन सराहता रहा। दूसरे दिन सुबह कार्यालय जाने से पहले उन्हें अपनी पत्रिका दे आया फिर कार्यालय चला गया। अब प्रायः उनके यहां आना जाना शुरू हुआ और फिर अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों कवियों संपादकों से मिलने का एक अटूट क्रम भी शुरू हो गया। वहां पंडित नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, श्री श्याम मोहन त्रिवेदी, राम स्वरूप द्विवेदी, कैलाश कल्पित आदि अनेक साहित्यकार निरंतर आते रहते थे। पंडित महेश प्रताप नारायण अवस्थी का प्रथम दर्शन भी मुझे श्रीमती सिरोठिया जी के आवास पर ही हुआ और तो फिर अनेक दिग्गज साहित्यकारों के यहां जाने का क्रम भी शुरू हो गया। श्रीमती महादेवी वर्मा , डॉ रामकुमार वर्मा , विनोद रस्तोगी, पंडित राजाराम शुक्ला, डॉक्टर जगदीश गुप्त , डॉक्टर हरदेव बाहरी ,डॉक्टर राजकुमार शर्मा, उपेंद्रनाथ अश्क, डॉ प्रभात शास्त्री, डॉ संतकुमार टंडन रसिक, पंडित जगपत चतुर्वेदी,ठाकुर श्री नाथ सिंह आदि विशिष्ट जनों से मिलने का सौभाग्य श्रीमती सिरोठिया जी के माध्यम से ही हुआ। फरवरी 1984 में प्रथम श्रीमती शकुंतला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार हरदोई के रोहिताश्व अस्थाना जी को दिया गया। उस समारोह में डॉक्टर राष्ट्रबंधु जी, नरेश चंद सक्सेना सैनिक,शिव शंकर मिश्र जी, डा ० रामेश्वर दयाल दुबे आदि से मिलने और उनके साथ साक्षात्कार करने का सौभाग्य मिला। डॉक्टर संत कुमार, कोटेश्वर नाथ त्रिपाठी,अरुण कुमार अग्रवाल अजामिल जी, अंजनी कुमार दृगेश, पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी,पंडित शंभु नाथ त्रिपाठी अंशुल ,प्रेम नारायण गौड़ , तिलक राज गोस्वामी,पंडित उमाकांत मालवीय, डॉ हरिमोहन मालवीय, कृष्णेश्वर डींगर,दयाशंकर सिंह, श्रीमती शोभा श्रीवास्तव, महेंद्रराजा जैन, डा० मत्स्येंद्रनाथ शुक्ल,डॉ दीनानाथ शुक्ल दीन, कृष्ण स्वरूप आनंदी , डा० बनवारी लाल, डॉ मोहन अवस्थी आदि बहुत से अन्य वरिष्ठ साहित्यकारों से मिलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। श्रीमती शकुंतला सिरोठिया जी के साथ लखनऊ, कानपुर आदि महानगरों में साहित्यिक समारोह में जाने का भी शुभ अवसर मिला, जहां पद्मश्री चिरंजीत , पंडित सोहनलाल द्विवेदी, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी,श्याम नारायण पांडेय,पद्मश्री वचनेश त्रिपाठी, डा० भगवान दास अरोड़ा, कृष्ण दत्त पालीवाल, योगेंद्र कुमार लल्ला , अश्वनी कुमार द्विवेदी श्रीमती मानवती आर्या,लक्ष्मी कांत वर्मा ,पंडित ठाकुर दत्त मिश्र,पंडित राम चंद्र मिश्रा, रमा प्रसाद पहाड़ी घिल्डियाल, भैया जी नरही,पंडित बाल कृष्ण पाण्डेय,पंडित राम नरेश त्रिपाठी आदि का स्नेहिल आशीर्वाद और सानिध्य श्रीमती शकुंतला सिरोठिया जी के सौजन्य से ही प्राप्त हुआ। इनकी कई पुस्तकों का प्रकाशन मेरे सामने हुआ। अंश अंश अभिव्यक्ति के प्रकाशन के समय दो बार प्रेस में भी आने जाने का अवसर मिला और कई ऐसी पुस्तकें थी, जिन्हें प्रकाशन उपरांत यत्र तत्र पहुंचाने का दायित्व भी मिला बाद में अभिषेक श्री संस्था का मुझे सचिव भी बनाया गया और कई वर्षों तक अभिषेक श्री पत्रिका का संपादन भी किया। उनके जीवन पर्यंत मैं निरंतर उनके संपर्क में रहा और प्रत्येक आयोजनों में मेरी सक्रिय भागीदारी होती रही। भीलवाड़ा से प्रकाशित सुप्रसिद्ध बाल साहित्य पत्रिका बाल वाटिका का विशेषांक भी श्रीमती सिरोठिया जी के ऊपर प्रकाशित किया गया जिस के संपादन में मैंने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। आज वह नहीं हैं फिर भी लोरियों की अधिष्ठात्री के रूप में पूरे साहित्य जगत में जानी जाती हैं। बाल साहित्य को उन्होंने एक नया आयाम दिया और दर्जनों से अधिक की संख्या में बाल साहित्यकारों को प्रोत्साहन दिया। श्रीमती शकुंतला सिरोठिया के ऊपर पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है। जब उनका अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया गया तो पूरे शहर में बहुत अधिक उत्साह के साथ मैंने उसमें सभी साहित्यकारों से रचनाएं एकत्र की थी।आज उनकी स्मृति को हम उन्हें सादर नमन करते हैं।
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