जौनपुर। प्रबोधिनी एकादशी कल,तैयारी शुरू

जौनपुर। चार नवंबर षुक्रवार को देवउठनी एकादशी है। हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक शुक्ल एकादशी को देव जागरण का पर्व माना गया है। इस दिन श्रीहरि भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा से जाग जाते हैं। इस पावन तिथि को देवउठनी ग्यारस या देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। चार महीने से विराम लगे हुए मांगलिक कार्य भी इसी दिन से शुरू हो जाते हैं।
         
कार्तिक पंच तीर्थ महास्नान भी इसी दिन से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है। पर्व की पूर्व सन्ध्या पर बाजारो में सिघाड़ा और कन्द की दुकाने अनेक स्थानों पर सड़कों के किनारे लगी रही और लोगों की भीड़ लगी रही। ज्ञात हो कि इस दिन सांयकाल में पूजा स्थल को साफ़-सुथरा कर आटे में हल्दी मिलाकर पूजा कक्ष में रंगोली बनायी जाती है। घी के ग्यारह दीपक देवताओं के निमित्त जलाकर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा के लिए, ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा, लड्डू, पतासे, मूली आदि ऋतुफल एवं नवीन धान्य इत्यादि रख कर श्रद्धापूर्वक श्री हरि को अर्पण किया जाता है। इस दिन मंत्रोच्चारण,स्त्रोत पाठ, शंख घंटा ध्वनि एवं भजन-कीर्तन द्वारा देवों को जगाने का विधान है। सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए प्रभु का चरणामृत अवश्य ग्रहण करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि चरणामृत सभी रोगों का नाश कर अकाल मृत्यु से रक्षा करता है,सभी कष्टों का निवारण करता है। इस दिन विष्णु स्तुति,शालिग्राम व तुलसी महिमा का पाठ व व्रत रखना चाहिए। भगवान को जगाने के लिए इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। पदम पुराण में वर्णित एकादशी महात्यम के अनुसार देवोत्थान एकादशी व्रत का फल एक हज़ार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर होता है। एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान,शांति प्रदाता व संततिदायक है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्त्व है। इस व्रत को करने से जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। विष्णु पुराण के अनुसार किसी भी कारण से चाहे लोभ के वशीभूत होकर या मोह के कारण जो एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का अभिनंदन करते है वे समस्त दुखों से मुक्त होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।

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