उतरौला(बलरामपुर) किसान फसल अवशेष को न जलाएं क्योंकि फसलों के अवशेषों को जलाने से उनके जड़,तना,पत्तियों के लाभदायक पोषक तत्व नष्ट होने के साथ ही मृदा ताप में वृध्दि होती है।जिसके कारण मृदा के भौतिक,रसायनिक एंव जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
उक्त जानकारी कृषि विशेषज्ञ डा०जुगुल किशोर ने देते हुए बताया कि मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होने से मृदा में मौजूद जीवांश पदार्थ सड़ नहीं पाता है तथा पौधे पोषक तत्व प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।परिणाम स्वरूप उत्पादकता में गिरावट आती है इसके अतिरिक्त वातावरण के साथ साथ पशुओं के चारे की व्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।फसल अवशेषों को जलाने से फसलों व आबादी में आग लगने की भी संभावना बनी रहती है।फसल अवशेष जलाने से हो रहे वायु प्रदूषण से अस्थमा व एलर्जी जैसी अन्य कई प्रकार की बीमारियों को बढ़ावा मिलता है एंव धुंध के कारण दुर्घटनाएं हो सकती है।किसान फसल अवशेषों का उचित प्रबंध कर फसल अवशेषों से कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाकर प्रयोग करें तो खेत की उर्वरक क्षमता के साथ ही भूमि में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में भी वृध्दि होगी।
फसल अवशेषों की मल्चिंग करने से खरपतवार कम होते हैं,तथा जल का वाष्पौत्सर्जन भी कम तथा सिचाई जल की उपयोग दक्षता बढ़ती है।
असगर अली
उतरौला
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