(अच्छा लगे, तो मीडिया के साथी *राजेंद्र शर्मा* का यह व्यंग्य ले सकते हैं। सूचित करेंगे, तो खुशी होगी।)
*अब तेरा क्या होगा रे बुलडोजर!*
*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
मोदी जी को इस देश को विश्व गुरु बनाने के लिए और क्या-क्या त्यागना पड़ेगा! पहले, भाई लोगों ने बेचारे से अच्छे दिनों का त्याग कराया। मजाल है, जो पिछले पांच-छ: साल में बेचारों ने एक बार भी अच्छे दिनों का जिक्र तक किया हो। वादा वगैरह करने की तो खैर बात ही भूल जाओ। उसके बाद भाई ने नये इंडिया को पकड़ा, तो वह भी बेचारे को राष्ट्र हित में जल्द ही छोडऩा पड़ गया। दूसरी पारी शुरू होने से पहले ही। दूसरी पारी शुरू होने के बाद तो अगले ने भूले से भी कभी नये इंडिया का जिक्र नहीं किया। अब स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह के बाद से अमृत काल पकड़ा जरूर है, पर लगता है कि साल पूरा होते-होते बेचारे को इस का भी त्याग करना पड़ेगा। अब बताइए, बेचारों के आठ साल के राज की एक विश्व स्तर की नयी और एकदम ऑरीजिनल खोज है -- बुलडोजर राज। अब वह भी खतरे मेें है और वह भी अदालत के हाथों।
असम की हाई कोर्ट कहती है कि -- सरकार बुलडोजर नहीं चला सकती। न किसी के घर पर, न दुकान पर। आदेश किसी का भी हो, सरकार बुलडोजर चला ही नहीं सकती है। कहां तो बेचारे हेमंत बिश्व सरमा जी गुजरात में मोदी जी के 2024 की जीत मांगने के साथ-साथ, गुजरातियों को बुलडोजर का महत्व समझा रहे थे और कहां पीछे से हाई कोर्ट ने उनका बुलडोजर ही जाम कर दिया। और सरकार के बुलडोजर चलाने पर रोक सिर्फ असम तक थोड़े ही रहेगी। कहते हैं -- बात निकलेगी, तो फिर दूर तक जाएगी। यूपी-एमपी वगैरह के बुलडोजर तक। और वहीं क्यों देश भर के बुलडोजरों तक। केसरिया सरकारों से जो इतने सारे बुलडोजर अर्जेंट आर्डर देकर खरीदवा लिए हैं, वे किस काम आएंगे? खड़े-खड़े जंग लग जाएगा बुलडोजरों में। डीजल चूहों के पीने के घोटालों का शोर मचेगा, सो ऊपर से। सच पूछिए तो फिर मोदी जी 2024 में जीत भी गए, तो क्या कर लेंगे, जब विजय जुलूस में सवार होने के लिए बुलडोजर ही नहीं होगा।
एक जमाना वो भी था, जब देश में बुलडोजर की ही चलती थी। सडक़ों पर भी, मोहल्लों में, चुनावों में भी, अदालतों में भी -- हर जगह सिर्फ बुलडोजर चलता था। यूपी से चला जरूर, पर मोदी जी के आशीर्वाद से बुलडोजर देश के कोने-कोने तक पहुंच गया। और तो और उत्तराखंड से लेकर, असम की पहाडिय़ों तक। और सिर्फ देश में भी कहां रुका बुलडोजर। इंग्लैंड तक के पीएम, जॉन्सन साहब सीधे अहमदाबाद में आए और बुलडोजर पर सवार होकर फोटो खिंचाए। और तो और, 75वीं सालगिरह के जश्न में अमरीका तक में भारतीय बुलडोजर पर सवार होकर जुलूस में पहुंच गए। पर जब लगने लगा कि बुलडोजर पर लादकर मोदी जी इंडिया को विश्व गुरु की गद्दी पर पहुंचा ही देेंगे, तभी भारत से जलने वालों ने भांजी मार दी। अमरीका में सिटी कार्पोरेशन ने बुलडोजर चलाने पर ही जुर्माना लगा दिया, भगवाप्रेमियों को माफी मांगनी पड़ी, सो ऊपर से। और अब, अमरीका तो अमरीका, भारत में भी अदालतों को बुलडोजरों के चलने पर कानून की चिंता होने लगी। अब तो बस सबसे बड़ी अदालत के यह कहने की ही कसर है कि उसकी इजाजत के बिना बुलडोजर नहीं चलेगा। अगर सवारी के लिए बुलडोजर ही नहीं होगा, तो अमृतकाल क्या पैदल चलकर आएगा!
शुक्र है कि केसरिया भाइयों ने वक्त पर बुलडोजर के दूसरे इस्तेमाल शुरू कर दिए हैं। सुना है कि गुजरात में, बुलडोजर दिन में शहरों में कूड़ा उठाते हैं और शाम में भगवाई नेताओं को। उधर एमपी में मंदिरों में भंडारे के लिए सब्जी बनाने से लेकर हलुआ मिलाने तक में बुलडोजर काम आ रहा है। यानी उम्मीद अब भी बाकी है। कौन जाने हमें बुलडोजर के भांति-भांति के उपयोगों का ही विश्व गुरु मान लिया जाए।
*(व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और ’लोकलहर’ के संपादक हैं।)*
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