★ *आत्मावलोकन* ★
      

एक दिन विक्रमादित्य अपने गुरूजी के दर्शन करने उनके आश्रम में पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने अपने गुरूजी से कहा- *गुरूजी! कोई ऐसा प्रेरक वाक्य बताइए जो महामंत्र बनकर न केवल मेरा बल्कि मेरे उत्तराधिकारियों का भी मार्गदर्शन करता रहे।* 

गुरूजी ने एक श्लोक लिखकर दिया जिसका आशय था- *मनुष्य का दिन व्यतीत हो जाने के बाद कुछ समय निकालकर कुछ चिन्तन करना चाहिए कि आज का मेरा पूरा दिन सत्कर्म करते बीता या पशुवत। क्यों कि स्वयं के लिए तो पशु भी जीवन जीते हैं, जब कि मनुष्य को अपना जीवन सार्थक करना है तो समाज सेवा, परोकार प्रतिदिन करना ही चाहिए।* 

इस श्लोक का विक्रमादित्य पर इतना असर हुआ कि उन्होंने इसे अपने सिंहासन पर अंकित करा लिया। अब रोज इस बात का विचार करते कि उनका दिन अच्छे काम में बीता कि नहीं। 

एक दिन अति व्यस्तता के कारण किसी की मदद अथवा परोपकार का काम वे नहीं कर पाए। रात को सोते समय कामों से निवृत होने पर उन्हें स्मरण आया कि आज उनके हाथ से कोई सद्कार्य नहीं हुआ है। वह बैचेन हो उठे। उन्होंने सोने की कोशिश की पर उन्हें नींद नहींं आई। आखिर वे उठकर बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति रास्ते में ठण्ड से सिकुड़ता हुआ पड़ा है। उसे उन्होंने अपना दुशाला ओढ़ाया और फिर राजमहल में लौट आए। अब उनके मन को सन्तोष हुआ कि अब दिन अच्छा बीता। वे सोचने लगे कि *यदि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन कुछ न कुछ सद्कार्य करके ही सोए तो पूरी सृष्टि में ही आनन्द भर जाए।* 

*अच्छे कहे जाने वाले नागरिक प्रतिदिन अपना स्वयं का मूल्याँकन करते हैं, और यदि अच्छा बन पड़ा तो परमात्मा को धन्यवाद करते व यदि बुरा हुआ तो पश्चाताप् कर अब आगे से ऐसा नहीं करूँगा, का संकल्प लेकर सो जाते हैं।*

*शुभ प्रभात। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*

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