वृन्दावन।वंशीवट क्षेत्र स्थित श्रीनाभापीठ सुदामाकुटी में चल रहे साकेतवासी श्रीमहंत भगवानदास महाराज के त्रिदिवसीय पुण्यतिथि महोत्सव के दूसरे दिन प्रातःकाल श्रीमद्भक्तमाल ग्रंथ का संतों द्वारा संगीतमय सामूहिक पाठ किया गया।तत्पश्चात संत-विद्वत सम्मेलन का आयोजन श्रीनाभापीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु स्वामी सुतीक्ष्णदास देवाचार्य महाराज के पावन सानिध्य में संपन्न हुआ।
स्वामी सुतीक्ष्णदास महाराज ने कहा कि हमारे सदगुरुदेव साकेतवासी भगवान दास महाराज परम तपस्वी व वीतरागी संत थे।वह सहजता,सरलता, उदारता व परोपकरिता आदि सद्गुणों की खान थे।यदि हम लोग उनके किसी एक गुण को भी अपने जीवन में धारण कर लें, तो हमारा कल्याण हो सकता है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि साकेतवासी भगवानदास महाराज रामानंद सम्प्रदाय के प्रमुख स्तंभ थे।उन्होंने रामानंद सम्प्रदाय के संवर्धन व उन्नयन के लिए अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किए।उन्होंने अपने सदगुरुदेव साकेतवासी सुदामादास महाराज के बताए हुए मार्ग पर चल कर सुदामाकुटी में कई महत्वपूर्ण सेवा प्रकल्पों को गति प्रदान की।
महंत जगन्नाथ दास शास्त्री महाराज ने कहा कि साकेतवासी श्रीमहंत भगवान दास महाराज संत सेवा, विप्र सेवा,निर्धन सेवा व गौसेवा आदि के मूर्तिमान स्वरूप थे।उन जैसी पुण्यात्माओं से ही पृथ्वी पर धर्म व अध्यात्म का अस्तित्व है।
महोत्सव के संयोजक श्रीमहंत अमरदास महाराज ने कहा कि साकेतवासी भगवानदास महाराज संत समाज के गौरव थे।वह सभी संप्रदायों को अत्यंत आदर व सम्मान देते थे।वस्तुत: वह समन्वयवादी संत थे।उनके निर्देशन में सुदामाकुटी आश्रम ने न केवल उत्तरोत्तर प्रगति की अपितु उसकी सीमाओं का निरन्तर विस्तार हुआ।
इस अवसर पर संत रामसंजीवन दास, पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ,संगीताचार्य स्वामी देवकीनंदन शर्मा, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, भरत शर्मा,नंदकिशोर अग्रवाल,निखिल शास्त्री, मोहन शर्मा, राजकुमार शर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।संचालन डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने किया।
राजकुमार गुप्ता
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