क्या वौइस् मॉडुलेशन गले के कैंसर को जन्म देता है?
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता
इंटरनेशनल वास्तु अकादमी
सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता
आवाज़ का मुँह से बहार आना एक प्रक्रिया के द्वारा संभव होता है और इस प्रक्रिया में हमारी स्वर रज्जु की भूमिका है। स्वरयन्त्र या लैरिन्क्स के दोनों ओर इलास्टिक संयोजी ऊतक के तन्तुओं से डोरी के समान निर्मित रचनाएँ होती हैं, जिन्हें वास्तविक स्वर रज्जु कहा जाता है वे स्वर उत्पान करने में कार्य करता है। इसके अलावा कूट स्वर रज्जु भी है, परन्तु इसका स्वर उत्पन्न करने में कोई विशेष योगदान नहीं रहता है। निःश्वसन के दौरान जब वायु वेगपूर्वक इस ददार से होकर निकलती है तो स्वर रज्जु कम्पित होते हैं और ध्वनि उत्पन्न होती है। जब स्वरयन्त्रज पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं तो उपास्थियाँ बाहर की ओर घूम जाती हैं, जिससे स्वर रज्जु एक-दूसरे से दूर हट जाते हैं और ददार विस्फारित हो जाती है, जिससे कोई ध्वनि उत्पन्न नहीं होती है । ध्वनि का तारत्व रज्जुओं की लम्बाई और उनमें तनाव पर निर्भर रहता है, जिससे स्वर रज्जुओं में प्रकम्पन होता है। बढ़ा हुआ तनाव ऊँचा स्वर तथा कम तनाव मन्द स्वर उत्पन्न करता है। विभिन्न शब्दों के रूप में ध्वनि का परिवर्तन होंठ, जीभ एवं कोमल तालु की पेशियों की गतियों पर निर्भर रहता है।
गले का कैंसर
कैंसर के ट्यूमर को संदर्भित करता है जो गले, वॉयस बॉक्स या टॉन्सिल में विकसित होते हैं। भारत में हर साल गले के कैंसर के लगभग ८०,००० नए मामलों का निदान किया जाता है। ५० वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में इस कैंसर का अत्यधिक खतरा होता है और महिलाओं की तुलना में इसके विकसित होने की संभावना १५ गुना अधिक होती है। गले का कैंसर जो वॉयस बॉक्स को प्रभावित करता है, वोकल कॉर्ड कैंसर है, जिसे लारेंजियल कैंसर भी कहा जाता है। इसमें गले के सभी कैंसर का ५९ % हिस्सा होता है। ९० % वोकल कॉर्ड कैंसर अत्यधिक धूम्रपान के कारण होते हैं।
अब बात करते है टीवी आर्टिस्ट या सिनेमा आर्टिस्ट या फिर वौइस् ओवर करने वाले लोगो की तो ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है जो ये बताये की इन लोगो में गले का कैंसर ज्यादा होता है। तारक मेहता का उल्टा चस्मा की अदाकारा दिशा वाकाणी के गले की कैंसर को दयाबेन के वौइस् मॉडुलेशन सी जोड़ा जा रहा है जबकि मेडिकली ऐसी कोई स्टेटिस्टिक्स नहीं है। कैंसर को ले कर मैंने पहले भी बताया है चाहे गले का कैंसर हो या किसी दूसरे अंग का जन्मपत्रिका में एक चीज अवस्य देखे वह है शनि। शनि आयरन का मालिक है। हमारे रक्त में आयरन है हीमोग्लोबिन। आयरन या इस हीमोग्लोबिन का काम है ऑक्सीजन को सेल्स तक पहुँचाना, क्यों की आयरन ऑक्सीजन कर्रिएर है। शनि डिफेक्टिव होने से ब्लड में आयरन की कमी होती है और ऐसा होने से सेल्स को ऑक्सीजन कम मिलता है। एक उद्धरण से समझाती हूं - मान लीजिये एक घर है जो की आभाव ग्रस्त है, लोग ज्यादा है और भोजन कम तो वो लोग खाना कैसे खाएंगे ? एक बड़ी थाली लेंगे और सारा खाना उसमें डाल देंगे और सब एक साथ बैठकर खाएंगे। जब सेल्स को ऑक्सीजन कम मिलता है तो सेल्स एक साथ जुड़ने लगते है और एक संघटित जायंट सेल बन जाते है अपनी रक्षा के लिए। यहीं पर बात ख़तम नहीं होती है , सेल्स का एक स्वाभाव है की हर सेल आगे निर्धारित सेल्स पैदा करता है और एक निर्धारित समय के बाद आत्महत्या करता है अर्थात अपने आपको समाप्त कर देता है। पर यहाँ एक जायंट सेल जो बन गया है, फिर वो आगे जायंट सेल्स ही बनाता है। और अपने आप को आर्डर दे कर मरने की प्रक्रिया में सक्रिय नहीं रह जाता। इसलिए कैंसर सेल्स की बड़ी समस्या है -फ़ास्ट मल्टीप्लाई करना, बड़े आकर का होना और ब्रेन के आर्डर को नहीं मानना और अपने आपको निर्धारित समय के बाद समाप्त करना।
शनि को ठीक करने से इन रोगियों में निश्चित सफलता मिलती है।
एक और बात का ध्यान रखें- जन्मपत्रिका में छठा घर होता है बीमारी का और छठा का अथवा घर होता है लग्न का। तो न केवल गले के कैंसर बल्कि किसी भी जटिल बीमारियों में लग्न को बल देने से बीमारी को भगाना आसान होता है।
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