छठ पर्व - जानते हैं संतान सुख के लिए क्या करें, वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल से
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता
इंटरनेशनल वास्तु अकादमी सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता
सूर्य उपासना का महापर्व है छठ। संतान प्राप्ति के लिए भी किया जाने वाला पर्व है ये। इस पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बिहार का तो यह सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जबसे सृष्टि बनी, तभी से सूर्य वरदान के रूप में हमारे सामने हैं और तभी से उनका पूजन होता रहा है।
लोक-कथाएं
जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हारकर जंगल-जंगल भटक रहे थे, तब इस दुर्दशा से छुटकारा पाने के लिए द्रौपदी ने सूर्यदेव की आराधना के लिए छठव्रत किया। इस व्रत को करने के बाद पांडवों को अपना खोया हुआ वैभव प्राप्त हो गया था। भगवान् राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान् सूर्य की आराधना की और सप्तमी के दिन व्रत पूर्ण किया। सरयू नदी के तट पर राम-सीता के इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान् सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।
छठव्रत की शुरुआत 'खरना' से आरंभ होती है। इस दिन व्रती स्नान-ध्यान कर शाम को गुड़ की खीर-रोटी का प्रसाद खाते हैं।
'खरना' के बाद दूसरे दिन से २४ घंटे का उपवास आरंभ होता है। दिन में व्रत रखने के बाद शाम को नदी के किनारे सूर्यास्त के साथ व्रती जल में खड़े होकर स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देते हैं और सूर्यास्त के बाद ही घर लौटते हैं।
संतान प्राप्ति के लिए व्रत करके ये कथा सुनें:
स्वायम्भुव मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत के संतान उत्पन्न नहीं हुई। महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को चरु (प्रसाद) दिया, जिससे गर्भ तो ठहर गया, किन्तु मृत पुत्र उत्पन्न हुआ। मृत पुत्र को देखकर रानी मूर्च्छित हो गई। उसे लेकर प्रियवत श्मशान गए। पुत्रवियोग में प्रियवत ने भी प्राण त्याग ने का प्रयास किया। ठीक उसी समय विमान पर षष्ठीदेवी वहां आ पहुंची। मृत बालक को भूमि पर रखकर राजा ने देवी को प्रणाम किया। देवी ने अपना परिचय दिया की वे ब्रह्मा की मानस कन्या,देवसेना है। मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण विश्व में षष्ठी नाम से मेरी प्रसिद्धि है। देवी ने बालक को उठा लिया और पुनः जीवित कर दिया। राजा ने उसी दिन घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठीदेवी की पूजा संपन्न की। चूंकि यह पूजा कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी, अतः इस तिथि को षष्ठी देवी / छठ देवी का व्रत होने लगा।
संतान की अभिलाषी माताए और संतान से पीड़ित माताएं इस व्रत को करें।
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