जौनपुर। पितृपक्ष की शुरूआत, पितरों को जलांजलि
जौनपुर। पितृपक्ष की शुरूआत हो चूकी है। इस अवधि में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने से पूर्वज अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। 15 दिनों तक चलने वाले इस कर्मकांड में पितर कौए के रूप में धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के साथ समय बिताते हैं। हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोग पितरों को प्रसन्न करने के लिए नदी में स्नान, पिंडदान, तर्पण, दान इत्यादि करते हैं। शास्त्रों में पिंडदान करने की विधिवत प्रक्रिया बताई गई है जिनका पालन करना सभी के लिए अनिवार्य है। पितृपक्ष में तर्पण देते समय तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का प्रयोग किया जाता है। वहीं श्राद्ध में पितरों को प्रसन्न करने के लिए केला, सफेद पुष्प, उड़द, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ना इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है।
इस दौरान श्रद्धालु अपने पितरों को याद करते हुए उनके निमित्त तर्पण, श्राद्ध व पिंडदान कर अपनी श्रृद्धा, आस्था और कृतज्ञता प्रकट करेंगे। कई स्थानों पर भागवत कथा और गरुण पुराण के आयोजन किए जाएंगे। पितृ में घाटों पर तर्पण के जरिए जलांजलि देने की शुरुआत हो गई जो पितृमोक्ष अमावस्या तक जारी रहेगी। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस अवधि में पितृ अपने-अपने परिजनों के घर वायु रूप में आते हैं, अतः उनके निमित्त तर्पण व पिंडदान आदि करने का विधान है। पितृदोष निवारण के लिए पितरों को जलांजलि दी जाना चाहिए। किस दिन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाए, इसे लेकर विधान है कि जिस पूर्वज, पितृ या परिवार के मृत सदस्य के निधन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए, यदि तिथि ज्ञात न हो सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है। इन दिनों में जरूरतमंदों को भोजन बांटना चाहिए।
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