सौभाग्य सजाकर मस्तक पर ,सिंदूर लगाया करती है।
मर्यादा भारत की सिर रख वह,मांग सजाया करती है।।
वह पार्वती है,अडिग,अचल,लाज सजाकर आंखों में।
कुल का सम्मान बचाने को,कुर्बान हो जाया करती है।।
धरती- सा धैर्य वरण करती , हरियाली वह देने वाली।
सारे दुःख-दर्द सहन करके,वह सृष्टि बढ़ाया करती है।।
देवासुर - रण की कैकेयी, उर्मिल -सीते -द्रोपदी वही।
झांसी की रानी नारी में , तलवार चलाया करती है।।
रख करवा,चौथ,तीज का व्रत,साधती सदा जीवन अपना।
पति-पुत्र सुखी हो जाएंगे,खुद को समझाया करती है।।
सती की शक्ति से धर्मराज , डरकर वापस हो जाते हैं।
सबके सुख खातिर खुद का ही,अरमान मिटाया करती है।।
वह मौन तपस्वी घर को ही , अपना सर्वस्य समझ लेती।
वह धरती स्वर्ग बनाने को , संसार में आया करती है।।
हे कुशल साधिके! हे देवी, तुम हो तो सारा जग सुंदर।
तुमको प्रणाम सत कोटि नमन,तू हमें बनाया करती है।।..."अनंग"
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