जौनपुर। चिकित्सकों ने साझा किए आत्महत्या की सोचने वालों को बचाने के अनुभव

विश्व आत्महत्या बचाव दिवस पर बोले, समाज से कट रहे युवाओं की काउंसलिंग कर उन्हें संबल दिए जाने की जरूरत, आत्मविश्वास बढ़ाना जरूरी

20 से 45 वर्ष के लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति ज्यादा, प्रतियोगिता में असफलता सहित अन्य कारण जिम्मेदार 

जौनपुर। विश्व आत्महत्या बचाव दिवस पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) मछलीशहर में शनिवार को गोष्ठी का आयोजन हुआ। वक्ताओं ने आत्महत्या करने की सोच रहे लोगों के प्रति अपने अनुभवों, पीड़ित की मानसिक स्थितियां, उन्हें आत्महत्या करने की सोच से बाहर लाने के तरीकों के बारे में अपने अनुभव साझा किए। अध्यक्षता कर रहे चिकित्सा अधीक्षक (एमएस) डॉ विशाल यादव ने कहा कि मेरे वाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में बीते अगस्त के पहले सप्ताह बंधवा गांव का 40 साल का एक युवक आया। पहले वह सूरत में रहता था और उसका काम छूट गया था। काम न मिलने से डिप्रेशन में था। थोड़ी नशे की भी लत थी। पैसे की तंगी थी, उस पर तीन बच्चों की जिम्मेदारी भी। बड़ा बेटा 12वीं में, दूसरा नौवीं में तथा एक बेटी सातवीं में पढ़ती थी। इससे वह अनिद्रा का शिकार हो गया। मन उचट गया था। जीने की इच्छा नहीं होने की बात कह रहा था। मैंने उसकी काउंसलिंग की। उसे एन्टी साइकोटीक दवाइयां दीं। वहीं इंसान अगस्त के अंतिम सप्ताह में आया तो आत्मविश्वास से भरा था। काम की तलाश में फिर से सूरत जाने की तैयारी कर रहा था। ऐसे ही केराकत में भी एक पारिवारिक मामले में सफलता पाई थी। उस परिवार के कई लोग परेशान थे। उनकी काउंसलिंग कर और दवाइयां देकर उन्हें ठीक किया।

डॉ फरीद सिद्दीकी ने कहा कि ऐसे लोग जो समाज से कट रहे हों, जिनकी कोरोना में नौकरी चली गई हो, प्रतियोगी परीक्षा तैयारी कर रहे लेकिन परीक्षा में असफल हो रहे हों उनकी काउंसलिंग कर उन्हें संबल दिए जाने की जरूरत है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह आत्महत्या की बात नहीं सोचेंगे। उन्होंने कहा कि आत्महत्या करने की ज्यादा प्रवृत्ति 20 से 45 साल के बीच के लोगों में ज्यादा मिलती है। इसमें भी अगर प्रवृत्ति के तौर पर देखें तो इसमें भी दो वर्ग बन जाएंगे। पहला वर्ग 20 से 30 वर्ष की आयु के लोग तथा दूसरा 30 से 45 वर्ष के लोग। पहले वर्ग में प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से करियर बनाने का प्रयास करने वाले तथा दूसरे में प्रतियोगी परीक्षा में असफल रहने के बाद नौकरी नहीं पाने वाले, पारिवारिक कलह के शिकार, ज्यादा उधार ले लेने वाले या उधार में जिनका बहुत ज्यादा पैसा फंस गया और निकल नहीं रहा है, ऐसे लोग आएंगे। महिलाओं में भावुकता ज्यादा होती है। कभी-कभी वह इसके चलते आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती हैं। अंत में डॉ स्वतंत्र कुमार ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। गोष्ठी में डॉ फरीद सिद्दीकी, डॉ अमरेश अग्रहरि, राय साहब चौहान, वीरेन्द्र पटेल,वीरेंद्र कन्नौजिया, पंकज यादव,शैलेन्द्र मणि विश्वास,वीके पाल, अजित मौर्य आदि मौजूद रहे।

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