क्या ऐसा भी कोई श्राद्ध है जिसको करने से पुत्र मातृ ऋण से मुक्त हो सकता है - जानते हैं वास्तु शास्त्री सुमित्राजी से 

सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल 
इंटरनेशनल वास्तु अकडेमी 
सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता 
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आश्विनमासके कृष्णपक्षके पंद्रह दिन 'पितृपक्ष' के नामसे जानी जाती है। पितृपक्ष श्राद्धों के लिए निश्चित पंद्रह तिथियोंका एक समूह है। इन पंद्रह दिनोंमें लोग अपने पितरोंको जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथिपर श्राद्ध करते हैं। पितरोंका ऋण श्राद्धोंद्वारा चुकाया जाता है।  वर्ष के किसी भी मास तथा तिथिमें स्वर्गवासी हुए पितरोंके लिये पितृपक्षकी उसी तिथिको श्राद्ध किया जाता है। 

पूर्णिमा में देह त्यागने वालो का श्राद्ध कब करे :
पूर्णिमा पर देहान्त होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने की विधि बताई गई है।  

श्राद्ध क्या है :
'श्राद्ध' का शाब्दिक अर्थ है, श्रद्धासे जो कुछ दिया जाए।  

श्राद्ध क्यों करे :
पितृपक्षमें श्राद्ध करनेसे पितृगण पूरे वर्ष तक प्रसन्न रहते हैं। 

श्राद्ध कब करे और तर्पण कब करें-

पितृपक्ष में श्राद्ध तो मुख्य तिथियों को ही होते हैं, किंतु तर्पण प्रतिदिन किया जाता है। देवताओं तथा ऋषियोंको जल देनेके अनन्तर पितरोंको जल देकर तृप्त किया जाता है। यद्यपि प्रत्येक अमावास्या पितरोंकी पुण्यतिथि है। तथापि आश्विनकी अमावास्या पितरोंके लिये परम फलदायी है। 

माताओ का श्राद्ध कब करे और कहा करें-  

पितृपक्षकी नवमीको माताके श्राद्धके लिये पुण्यदायी माना गया है। माताओ के लिये काठियावाड़का सिद्धपुर स्थान परम फलदायी माना गया है। इस पुण्यक्षेत्रमें माताका श्राद्ध करके पुत्र अपने मातृ-ऋण से सदा-सर्वदा के लिये मुक्त हो जाता है। यह स्थान मातृगया के नाम से भी प्रसिद्ध है।

गया का श्राद्ध से क्या सम्बन्ध है :
श्राद्धके लिये सबसे पवित्र स्थान गयातीर्थ है। पितरोंके मुक्तिनिमित्त गयाको परम पुण्यदायी माना गया है।

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