वास्तु में ब्रह्मस्थान से जुड़ी भ्रान्तियां - जानते हैं वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
इंटरनेशनल वास्तु अकडेमी
सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता
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ब्रह्मस्थान से तात्पर्य भूखंड का केन्द्रीय स्थान है न की केंद्र बिंदु, ब्रह्मस्थान का क्षेत्रफल कुल भूखंड के क्षेत्रफल के अनुपात के आधार पर तय होता है। इसका तात्पर्य ये हुआ की अगर भूखंड बड़ा हुआ तो उसका ब्रह्मस्थान भी बढ़ जायेगा और छोटे स्थानों में ब्रह्मस्थान भी छोटा होगा। छेत्रफल के अनुपात में साधारण घरों के लिए ८१ पद की वास्तु बताई गई है जिसमें ९ बाई ९ = ८१ पदों में से ९ पद ब्रह्मा के बताए गए हैं। इससे ब्रह्मा का स्थान पूरे भूखंड का ९ वां भाग हुआ। लोग भ्रमवश किसी भी भूखण्ड के एकदम केन्द्रीय बिंदु को ही ब्रह्म स्थान मानते हैं। यदि १०० पद की वास्तु लागू करें तो ब्रह्मा का स्थान १६ पद हो जाता है। यह अनुपात 6.२५ आया अर्थात् भूखंड का ९ वां भाग न होकर 6.२५ भाग होगा । यदि ६४ पद का भूखण्ड लिया जाए तो उसमें ब्रह्मा का स्थान चार पद तक ही सीमित रह जाता है। यानि कुल पदों के १६ वें भाग में ब्रह्मा सीमित रह जाते हैं। अलग अलग निर्माण के अनुसार शास्त्र में बताया गया है की कितना पद वास्तु मंडल लागु होगा।
ब्रह्मस्थान से सम्बंधित ये ३ उलंघन कभी न करें-
। ब्रह्मस्थान में जलासय न बनाएं, यहाँ वाटर फ़िल्टर या एक्वेरियम (मछलीघर) भी न रखें।
। ब्रह्मस्थान में दिवार या पिलर न बनवाएं, यहाँ तक की एक कील भी यहाँ न लगाएं।
। बहुत से लोग आंगन बनवा लेते हैं ब्रह्मस्थान में और बीचो बिच ब्रह्मस्थान में चबूतरा जैसा बनवा लेते हैं , ये वास्तु उलंघन है और ऐसा कभी न करें। अगर आपने ऐसी कोई गलती कर रख्खी है तो तुरंत सुधार लें।
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