ग़र सांसद,मंत्री और विधायक ये ज़िम्मेदार न बिकते।
तो शासन-प्रशासन के ये हर पहरेदार न बिकते।।
न दबी रहती हम बेबस लाचारों की सिसकियाँ।
ग़र चन्द पैसों में यहाँ,ये पत्रकार ना बिकते।।
न चलता,न फलता-फूलता ये गोरख धंधा।
ग़र सिपाही सहित ये थानेदार न बिकते।।
हिम्मत न होती किसी की घोटाले करने की।
ग़र हमारे चुने हुए ये वफ़ादार न बिकते।।
होता अब भी भरोसा छपे अख़बारों का।
ग़र आशीष बिके हुए ये अख़बार न बिकते।।
ब्राह्मण आशीष उपाध्याय
#vद्रोही
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