१२ साल का एक बालक गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में अपनी गिरफ्तारी देता है जहाँ उसे १५ कोंडो की सजा मिलती है उन कोंडो की मार से उसके कपड़े फट जाते है उसके बाद वो बालक उन फटे कपड़ो को त्याग देता है और कहता है अंग्रेजों के बारूद के कारखानो में वो कारतूस नही बनी जिसपे मेरा नाम लिखा हो ,उनकी फैक्टरियों में वो सीमेंट और वो शरिया नही बना जिससे बनी दीवारो में मुझे कैद किया जा सके ,न ही कोई ऐसा वीर है अँग्रेजी सेना में जो मेरे जीते जी मुझे छू सके मै आजाद था आजाद हूँ और आजाद रहूंगा । और २७जुलाई १९३१ तक जब तक वो माँ भारती का वीर जिया उसे न कोई छू पाया न कैद कर पाया वीरगति को भी प्राप्त हुआ तो अपनी ही गोली से ।नमन है माँ भारती के ऐसे वीर पुत्रों को ।
इसी तरह के अनगिनत संकल्पों त्यागो और दृढ़ प्रतिज्ञा का फल हमको १५अगस्त १९४७ को मिला जिसे हम आज स्वतंत्रा दिवस के रुप में मना रहे हैं ।आप सभी को स्वतंत्रा दिवस की अनन्त शुभकामनाएँ।
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