जौनपुर। रचना- सपना नई काशी बसाने का....
मैं काशी नई बसाऊँगा
वही कुश के घने जंगलों वाली...वही काशी जहाँ ऋषि-मुनियों ने
पहली बार°काश"का दर्शन किया
वही काशी जिसे एक राजा ने
अपनी बहन के श्रृंगार के लिए
दहेज में दान दे दिया था.....धरम-करम और संस्कृति के साथ
सर्व विद्या की राजधानी काशी
शिव के त्रिशूल पर बसी और
वरुणा,अस्सी और गंगा के किनारे
चौरासी घाटों वाली काशी....भूखे का पेट भरने वाली
अक्षय पात्र-अन्नक्षेत्र काशी
मोक्ष का खुला द्वार,
अविमुक्त क्षेत्र काशी....स्वर्ग का सीधा मार्ग काशी
अखाड़ा,गमछा और लँगोट और
भभूत वाली काशी.....धक्का-मुक्की,गाली-गुप्ता
सुनते -सुनाते यार वाली काशी
तंग गलियों में बहार वाली काशी
जिसका भी अपना इतिहास है
किसी ना किसी बहाने
ये गलियों आज भी खास है...ऐसी ही नई काशी मैं बसाउँगा
यही मैं सोच रहा था.....गहन मंथन कर रहा था कि
कोई आकर नींद से जगा गया
सपनों की दुनिया से.....मुझे बाहर निकाल गया
स्थिरमना होकर....
अब मैं सोच रहा था
कहाँ सम्भव है बना पाना...इतना सारा समुच्चय एक साथ
काशी तो सनातन है और
सनातन बनी रहेगी.….कुछ-कुछ परिवर्तनों से
हर कालखंड में सजी रहेगी
कोई न कोई महापुरुष आता रहेगा
इस काशी की शोभा बढ़ाता रहेगा
किसी ओर से या किसी छोर से
इसे सजाता रहेगा.....शायद इसी कड़ी में
"नमो" का काशी में
हुआ आगाज है......पूरी काशी को जिस पर नाज है
अब तो सँवर रही काशी है.....
मित्रों.... इसलिए......
नई काशी बसाने का सपना
सर्वथा त्याज्य है......नई काशी बसाने का सपना
सर्वथा त्याज्य है.....
रचनाकार.....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,जनपद-जौनपुर
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