राजनीति के ये नकारात्मक आंदोलन - अनुज अग्रवाल

  पिछले एक दशक में देश निरंतर आंदोलनों की शृंखला से आंदोलित रहा है। जन- लोकपाल का अन्ना आंदोलन जिस भी कारण, जिस किसी संगठन के लोगों व मुद्दों से हुआ हो , अंतत: उसका लाभ भाजपा व नरेंद्र मोदी को ही हुआ और सन 2014 में हिंदुत्व के साथ साथ भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा था जिसके कारण नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने। अनेक आशंकाओं के बाद जब सन 2019 में नरेंद्र मोदी की सत्ता में दोबारा वापसी हुई तो हारे- खीजे विपक्ष में देश में आंदोलनों की एक शृंखला ही खड़ी कर दी। सीएए-एनआरसी के विरोध में विपक्ष ने अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर मुस्लिमों को भड़काकर लंबे समय तक देश में अराजकता बनाए रखी तो उसके बाद कोरोना काल में संसद द्वारा पारित कृषि सुधार विधेयकों के व्यापक विरोध का खेल खेला गया। उद्देश्य स्पष्ट थे दोबारा सत्ता में आयी मोदी सरकार की जीत को “जनता को भ्रमित” होने व करने के रूप में प्रचारित करना, सरकार को पटरी से उतारना व अराजकता फैलाना, सुधारों व विकास की राह बाधित करना, मोदी सरकार की नीतियों व योजनाओं के कारण  वैश्विक स्तर पर भारत की छवि खराब कर उसे अल्पसंख्यक विरोधी के रूप में स्थापित करना। इसी क्रम में तीन नए आंदोलन पिछले दिनो और सामने आए “ नूपुर शर्मा के नवी पर विवादास्पद बयान “ की आड़ में जुमे की नमाज के बाद मस्जिद में इकट्ठी हुई भीड़ द्वारा पत्थरबाजी कर देशभर में दंगे भड़काना, नेशनल हेराल्ड मामले में गांधी परिवार के विरुद्ध ईडी की जांच के विरुद्ध कांग्रेस पार्टी द्वारा देशभर में विरोध व आंदोलन एवं सेनाओं में भर्ती की नई “अग्निवीर योजना” का देशभर में व्यापक व हिंसक विरोध व आंदोलन। इन सभी विरोध प्रदर्शनों व आंदोलनों को विपक्षी दलों का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष समर्थन मिल रहा है। “ विरोध के लिए विरोध “ की विपक्ष की राजनीति ने देश में सामान्य जीवन व परिस्थितियों को लगभग समाप्त कर दिया है। आम जनता लगातार धरने, प्रदर्शनों, बंद, आगजनी, दंगो, सांप्रदायिक व जातीय तनाव व वैमनस्य, अराजकता, ट्रैफिक जाम, तनाव व अनिश्चय के वातावरण में है। सत्ता पक्ष की सत्ता में बने रहने व विपक्ष की फिर से सत्ता में आने की कोशिशें अब देश की जनता पर भारी पड़ती जा रहीं है और लोकतांत्रिक मूल्यों व परिभाषाओं के दायरे से बहुत अधिक बाहर जा चुकी हैं। वोट बैंक की राजनीति ने देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बहुत व्यापक व घातक बना दिया है। इस पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रव्यापी चिंतन व विमर्श की आवश्यकता है। देश की राजनीति का सबसे बड़ा संकट यह है कि विपक्ष के पास सरकार की आलोचना व विरोध के तो अनगिनत मुद्दे हैं किंतु अपना कोई वैकल्पिक चिंतन या दृष्टि नहीं है। इसी कारण वे निरंतर सिमटते व बिखरते जा रहे हैं या टूट टूटकर भाजपा में मिलते जा रहे हैं। क्षरण की यह बौखलाहट उनको नकारात्मक राजनीति की ओर ले जा रही है जो उनके व देश दोनो के लिए घातक है। बेहतर होता कि वे अल्पसंख्यकवाद व जातिवाद की राजनीति को छोड़ राष्ट्र की राजनीति करते और मोदी सरकार के समानांतर बड़ी लकीर खींचते। आशा है वे रचनात्मक व सकारात्मक राजनीति की ओर मुड़ेंगे अन्यथा अप्रासंगिक हो जाएँगे। 
 अनेक अवरोधों, आशंकाओं व आंदोलनों के बीच भाजपा एनडीए व मोदी सरकार ने राजनीति के अनेक मोर्चों पर बढ़त प्राप्त कर ली है। राष्ट्रपति पद के लिए एक वनवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को अपना प्रत्याशी बनाकर उन्होंने विपक्ष को पीछे धकेल दिया है व अब द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना निश्चित है। उप-राष्ट्रपति चुनावों में भी एनडीए को एकतरफा जीत मिलनी सुनिश्चित है। महाराष्ट्र में भी शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को साधकर व मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने परस्पर विरोधी विचारधारा के सत्ता की ख़ातिर बने गठजोड़ महाविकास अगाडी को सत्ता से बाहर कर दिया व सम्मान का प्रश्न बने हुए महाराष्ट्र में अपनी सरकार बना ली है। “परिवारवादी” राजनीति के विरुद्ध मोदी-शाह की यह गुगली आगामी महीनों में कई और राज्यों में भी तख्तापलट करवा दे तो बड़ी बात नहीं। झारखंड व राजस्थान के नाम चर्चाओं में आ ही गए हैं। उत्तरप्रदेश के उपचुनावों में रामपुर व आज़मगढ़ में भाजपा की जीत ने समाजवादी पार्टी की चूल हिला दी हैं तो संगरूर में आप पार्टी की हार से केजरीवाल- भगवंत मान को बड़ा झटका लगा है। मोदी-शाह की जोड़ी सन 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत की तैयारी में अभी से लग गए हैं। ऐसे में देश के विपक्षी दलों के लिए यह आत्ममंथन का समय है । नई नीति, नेता, एकता, ऊर्जा व कार्यक्रमों के साथ अगर वे आगे नहीं आए और नकारात्मक आंदोलनों की राजनीति में ही उलझे रहे तो वे कहीं के भी नहीं रहेंगे। 

Link of E - edition of Dialogue India political magazine July 2022 issue / डायलॉग इंडिया राजनीतिक पत्रिका के जुलाई 2022 अंक  का लिंक :

http://dialogueindia.in/wp-content/uploads/2022/07/dialogueindia-july-issue.pdf

अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
www.dialogueindia.in

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने