ज्ञानवापी मस्जिद श्रृंगार गौरी मामले (Gyanvapi Masjid Case) में पक्षकार बनने के लिए एक और याचिका दायर की गई है. यह याचिका बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय के बेटे निखिल उपाध्याय (Ashwini Upadhyay Son Nikhil Upadhyay) दाखिल की है. निखिल उपाध्याय ने हस्तक्षेप याचिका दायर कर कोर्ट से गुहार लगाई है कि उनकी दलीलें भी सुनी जाएं. निखिल उपाध्याय (Nikhil Upadhyay) की दलील है कि उपासना स्थल कानून 1991 सिर्फ पर्सनल लॉ के सिद्धांतों पर या निजी तौर पर बनाए गए स्थलों पर ही लागू होता है. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए चार जुलाई की तारीख मुक़र्रर कर दी है। उसी दिन अन्य मामलों की सुनवाई की भी तारीख है.
क्या है याचिका में ?
निखिल उपाध्याय (Nikhil Upadhyay) की याचिका के मुताबिक अवैध तौर पर जबरन बनाए गए या परिणत की गए धार्मिक स्थलों के मामले में रेट्रोस्पेक्टिव कट ऑफ की मियाद लागू नहीं की जा सकती है. क्योंकि हिंदू मंदिरों के मामले में आक्रमणकारी लोगों ने यही किया है. लेकिन हमारे संविधान के अनुच्छेद 372 के मुताबिक मंदिर का चरित्र और स्थिति नहीं बदली जा सकती.
क्योंकि मुस्लिम मंदिर की जगह को मस्जिद कह कर अपना दावा नहीं कर सकते. क्योंकि वो मुस्लिम उसूलों के मुताबिक वैध रूप से नहीं बनाई गई है. ज्ञानवापी के मामले में तो औरंगजेब का फरमान सबसे बड़ा गवाह है कि मंदिर और जमीन न तो उसकी थी और न ही निरापद थी.
ज्ञानवापी परिसर में मीडिया को जाने की अनुमति की मांग
निखिल उपाध्याय (Nikhil Upadhyay) ने कोर्ट से दो मांगें रखी हैं. पक्षकार बनाने के साथ ही दूसरी मांग ये है कि एक दिन के लिए ज्ञानवापी परिसर में सभी मीडिया को जाने दिया जाए. सभी न्यूज चैनल वहां जाएं और जनता को भी बताएं कि असलियत क्या है. इस हफ्ते की शुरुआत तक पांच याचिकाएं और दाखिल हुई. इनमें स्वयंभू ज्योतिर्लिंग आदि विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी भी शामिल हैं.
रस्तोगी की दलील है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत मेरिट के जिस बिंदु पर सुनवाई चल रही है, उसमें प्राचीन स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर को पक्षकार नहीं बनाया गया है. वह मुख्य देवता हैं और आवश्यक पक्षकार हैं. ऐसे में उनका पक्ष सुना जाना आवश्यक है. उनका पक्ष सुने बिना उनके हितों की रक्षा कैसे होगी?
पूजा स्थल कानून मंदिर के लिए, मस्जिद के लिए नहीं: अश्विनी उपाध्याय
अदालत में याचिका दाखिल करने के बाद मीडिया से बात करते हुए अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि पूजा स्थल कानून पूजा स्थल के लिए बना है. यह कानून मंदिर के लिए बना है मस्जिद के लिए नहीं. पूजा स्थल कानून की दलील मंदिर पक्ष अपनी ओर से दे सकता है, मस्जिद पक्ष नहीं दे सकता है. जहां तक कानून की बात है, कोई भी कानून अदालत का दरवाजा नहीं रोक सकता है. कोई भी कानून ज्यूडिशियल रिव्यू नहीं रोक सकता है. यह कानून राइट टू जस्टिस को नहीं छीन सकता है.
अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि अदालत के समक्ष उन्होंने दो मांगें रखी हैं. पक्षकार बनने के साथ ही हमने मांग की है कि एक दिन के लिए ज्ञानवापी में सभी मीडिया को जाने की अनुमति दी जाए. पूरे देश के चैनल वहां जाएं और जनता को भी बताएं कि वास्तविकता क्या है.
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