मन की इस अकुलाहट को दूर करने के लिए पुरातात्विक और आभिलेखिक साक्ष्यों पर दृष्टि डालने पर ज्ञात हुआ कि हिन्दू धर्म मे देवी की उपासना प्रागेतिहासिक युग से ही हो रही है। सैन्धवकाल में शक्ति सम्पन्न मातृदेवी की आराधना के स्पष्ट प्रमाण प्राप्त होते है।
वैदिक काल में समाज पुरुष प्रधानता की ओर अग्रसर होने लगा। यद्दपि इंद्र वरुण , रुद्र आदि देव प्रमुख रूप से प्रतिष्ठित हो गए तथापि ऋग्वेद में उषा, अदिति और वाग्देवी की स्तुति के प्रमाण मिलते है व वाग्देवी का ओजस्वी रूप भी प्रदर्शित होता है। ब्राहाण ग्रंथो पर दृष्टिपात करने पर शतपथ ब्राह्मण में 'अम्बिका' नाम की देवी का रुद्र की बहन तथा तैत्तरीय आरण्यक में रूद्र की पत्नी पार्वती के रूप में उल्लेख है।
महाकाव्य काल मे देवी का पूर्ण रूप से शक्तिसंपन्न रूप प्रतिष्ठित है। महाभारत में अर्जुन तो रामायण में राम युद्ध में विजय प्राप्ति की आकांक्षा से इनकी उपासना करते दिखाई पड़ते है । महाभारत में इसी संदर्भ में उल्लिखित है प्रातःकाल शक्ति का स्त्रोत का पाठ करने वाला युद्ध क्षेत्र में विजयी होता है तथा एकांतिक रूप से लक्ष्मी को प्राप्त करता है । वर्तमान में इनकी उपासना शिव की पत्नी शिवा पार्वती , उमा गिरिजा के रूप में होने के साथ साथ वह स्वतन्त्र रूप से भी पूजित हैं। यह शिव की शक्ति, भक्तों की रक्षिका तथा शत्रुओं की विनाशिका है।शिव की सहचरी के रूप में इनका सौम्य रूप तथा दुर्गा के रूप में यह उग्र रूप में पूजित हैं, इनकी चरण धूल को लेकर ब्रह्मा विश्व का सृजन, विष्णु पालन तथा रुद्र संहार करते है। कामप्रधान रूप में वह त्रिपुर सुंदरी की संज्ञा में विभूषित है और अलौकिक सौंदर्य शालिनी है।
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