रचना। - नदी,नदी स्नान और हम गाँव वाले

हम गाँव वाले बच्चों के....बचपन की मधुर स्मृतियों में से
एक है नदी स्नान
गर्मी के दिनों में....नदी के किनारे बसे गाँव के बच्चे
जब गाँव में होते....बड़े मन से.... 
ऊपर वाले से यही मनाते कि आज बिजली न आए,
ट्रांसफार्मर जल जाए और हाँ....
इतना कुछ न हो पाए तो जल निगम वाली.....
मोटर ही जल जाए या
खराब हो जाए.....इस बात का भी विश्वास था कि
सरकारी मशीनरी है न......जल्दी ठीक भी नहीं होगी
फिर तो आनन्द ही आनन्द था
दोस्तों के संग नदी में नहाने का... कभी बर्तन धुलने को,
कभी परिवार वालों को नहाने को,
तो कभी खाना बनाने को नदी से पानी लाने और
इसी बहाने अनायास ही 
कपड़े भिगोकर नदी में नहाने का बहाना तो अभी भी याद है....
इस दौरान मन और शरीर कभी थकता भी नहीं था
खुश रहकर आगे ही बढ़ता
चक्कर पर चक्कर लगाने को...इसी बहाने नदी में नहाने को नदी में नहाना...डुबकी लगाना....
मटके के सहारे तैरना और फिर पानी से घरवालों को तृप्त करना
एक सुखद एहसास होता....मित्रों नदी स्नान....वैसे तो....
सनातन आनन्द का विषय रहा है आज भी है .....पर......अफसोस इस बात का है कि
नई विचारधारा वाली,
हमारी नई पीढ़ियाँ........नदी स्नान से दूर होती जा रही हैं..
कभी पर्यावरण के बहाने तो कभी प्रदूषण के बहाने....!
और विज्ञानवाद के युग में वे.....
नदियों के संरक्षण की औऱ उसमें मनोरंजन की बात कर रहे हैं....
स्विमिंग पूल,मोटरबोट और क्रूजर की बात कर रहे हैं....
गगरी,मटका,पानी और
गाँव के कोहार से दूर होकर नदी के पानी से ही
पानी का व्यापार कर रहे हैं
मतलब साफ है.........नदी से और नदी स्नान से
बहुत ही कम प्यार कर रहे हैं.....
बहुत ही कम प्यार कर रहे हैं......

रचनाकार.....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,जनपद-जौनपुर

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने