#मां
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गीत, गजल वा छन्दों में अक्सर हंसती रहती माँ
अक्षर -अक्षर कल्पे उसको,शब्द-शब्द में दिखती माँ ।
सीता,सती,अनसुइया बन,घर आंगन में घूम रही
शुचिता का वह अर्थ बन गयी,गंगा सी है बहती माँ ।
चांद पंहुच मैं नभ को छू लूं,दुनिया में आदर्श बनूं
रहूं मगन जीवन में अपने, नित प्रयास है करती माँ ।
अधरों पर स्मित जो आयी,उसकी वह आधार बनी
नींद कभी न जब भी आये,लोरी बनकर गाती माँ ।
कांटा मुझको चुभा कभी,पीड़ा से वह तड़प गयी
नया तौलिया मुझको देकर,खुद गीले में सोती माँ ।
पायल की तेरी रुनझुन माँ, पूजा की घण्टी लगती है
हंसवाहिनी देवी जैसी सुन्दर अद्भुत दिखती माँ ।
#राजेश_ओझा मोकलपुर गोण्डा
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