जौनपुर:- जल संरक्षण के लिए सभी को आना होगा आगे— चन्दन
जौनपुर। जलालपुर:- जल ही जीवन है और जल के बिना इस धरती पर जीवन संभव नही है।जल मनुष्य के लिए ही नही बल्कि पशु पक्षियों जंगली जानवरों के लिए भी जरूरी होता है। जल ईश्वर की अनमोल धरोहर होती है, जिसे ईश्वर ने सम्पूर्ण प्राणी जगत के प्राण संचार बनाए रखने के स्वयं पैदा किया है। उक्त बातें भोजपुरी फिल्म अभिनेता व समाजसेवी चन्दन सेठ ने बुद्घवार को प्रेसवार्ता के दौरान कही। श्री सेठ कहते हैं भूखे को भोजन और प्यासे को पानी उपलब्ध कराना ईश्वर की पूजा के सामान होता है।एक समय था जब राजा महाराजा सेठ साहूकार दानी लोग तालाब सगरा और पौशाला चलवाकर लोगों की प्यास बुझवाकर पुण्य कमाते थे। उस समय हैंडपंप समरसेबल नलकूप नही होते थे, पानी की सबसे ज्यादा जरूरत गर्मी के दिनों में होती है और हर आदमी को कम से कम दस से बारह लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। मनुष्य की तरह पशु पक्षियों का जीवन भी बिना पानी के संभव नही है। इसलिए मनुष्य की तरह पशुओं के लिए पानी की नितांत आवश्यकता होती है।पालतू पशुओं के लिए तो पानी की व्यवस्था उसका पालक करता है लेकिन जो जंगली छुट्टा लावरिसों के लिए नदी नाले झरने तालाब तलैय्या होते हैं। इस तालाबों तलैय्यों नदियों झरनों नालों में पानी की आपूर्ति व्यवस्था ईश्वर खुद बरसात के रूप में करते हैं। जिससे उनमें हमेशा पानी विद्यमान रहता है समय के बदलाव के साथ मनुष्य की कार्यशैली में भी बदलाव आने से जंगल समाप्त हो रहे हैं और देशी बगीचों की जगह कलमी गमले में पेड़ लगने लगे हैं। जंगल पहाड़ एवं बाग बगीचों के अभाव के फलस्वरूप बरसात कम होने लगी है और जमीन का जलस्तर बढ़ने की जगह तेजी से गिरने लगा है। स्थिति दिनों दिन भयावह होती जा रही है और तमाम स्थानों पर पानी की समस्या पैदा होने लगी है। सरकार समस्या से निपटने के लिए अपनी तरफ से युद्घ स्तर पर अभियान चलाकर जल का संवर्दधन एवं संरक्षण करने का प्रयास कर रही है। जल संरक्षण और जंगली पशु-पक्षियों जानवरों के लिए गांव के तालाबों की खुदाई करवा रही है और नदियों की सफाई भी हो रही है।सरकार करोडों अरबों रूपये खर्च करके तालाबों की खुदाई भले करवा रही हो लेकिन उसका कोई लाभ नही मिल पा रहा है। बरसात कम होने से वह भर नही पाते हैं और बाहरी पानी जाने का रास्ता नही है। जल ग्रहण करने के लिए जो व्यवस्था की गई है वह अस्वाभाविक है जिसकी वजह से बाहरी पानी उसमें नही आ पा रहा है। जो बरसाती पानी इकट्ठा भी होता है वह चैत बैसाठ अप्रैल मई लगने के पहले ही सूख जाता है।इस समय भीषण गर्मी के चलते हर तरफ पानी की मांग बढ़ गई है। तालाबों झीलों में पानी न होने से जंगली पशु पक्षियों को जान बचाने के लाले पड़े हैं और वह जान जोखिम में डालकर गांव की आबादी में घुसकर प्यास बुझाने के लिए मजबूर हो गए हैं। हर साल अप्रैल लगते ही मुख्य तालाबों में सरकार ग्राम पंचायतों के माध्यम से पानी भरवा देती थी लेकिन इस बार अभी इसकी शुरूआत ठीक से नही हो सकी है। जंगली जानवरों पशु- पक्षियों की जान बचाना मानव धर्म एवं सरकार का कर्तव्य बनता है। इस समय पशुओं के लिए घर से थोड़ी दूर पर नाँद आदि में पानी रखकर कोई भी आदमी पुण्य का भागीदारी बन सकता है। पक्षियों के लिए घर के आँगन या छत पर खुले में पानी रखकर मनुष्य के साथ जीने मरने वाले पक्षियों की जान बचाना चारों धाम या हज के बराबर है। आज जहां हम विकास के दौर में हम बुलंदियों पर पहुंच गए हैं वहीं मानवीय धर्म संस्कृति के मामले में गिरते जा रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हो चाहे वातावरण प्रदूषण या जल संकट बरसात हो उसके लिए हम आप सबसे पहले खुद कहीं न कहीं हम सब जिम्मेदार हैं।

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