खुटहन(जौनपुर): मुबारकपुर गांव में देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी राजा इदारत जहां व उनके 40 साथियो को अंग्रेजों ने धोखे से घेरकर एक साथ फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था। 10 मई 1857 को बलिदान होने वाले राजा इदारत जहां के बलिदानी स्थल पर मेला लगाने की बात तो दूर साफ सफाई कराने की जरूरत नहीं समझी जाती। शासन प्रशासन की अनदेखी के चलते यह स्थल उपेक्षित है। हांलाकि उनके प्रपौत्र अंजुमन हुसैन हर साल की तरह मंगलवार को भी यहां चादरपोशी कर बलिदानियों को नमन किया।
मालगुजारी न देने पर अंग्रेजों के क्रूर अत्याचार के शिकार राजा इदारत जहनिया खानदान से ताल्लुक़ रखते थे। इनका जन्म 1801 में माहुल (आजमगढ़) मे हुआ था। इतिहास के जानकार बताते हैं कि 1857 में छिड़े प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राजा इदारत ने अंग्रजों को लगान देने से मना कर दिया। उनकी रियासत जौनपुर से लेकर आजमगढ़ तक फैली हुई थी। इससे अंग्रेजी सेना नाराज होकर इनके पीछे पड़ गई, लेकिन अंग्रेज सीधे मुकाबले में भागते रहे। इसी बीच एक दिन शाम को इदारत जहां मुबारकपुर में अपनी बनवाई मस्जिद में नमाज अदा करने पहुंचे। इसकी सूचना फसाहत जहां नामक एक गद्दार ने उनके आगमन सूचना अंग्रेजो को दे रखी थी। राजा इदारत जहां और उनके निहत्थे सैनिकों पर अंग्रेजों ने नमाज अदा करते समय पकड़ लिया। पहले तो अंग्रेजों ने उनके समक्ष नतमस्तक होकर लगान जमा करने की शर्त रखी। इसे न मानने पर उनके हाथी को पेड़ के नीचे ले जाकर डाल से उनके गले मे फंदा पहना हाथी को नीचे से हटा दिया। फंदे से झूलते ही राजा वीरगति को प्राप्त हो गए। वहीं उनका हाथी भी चिग्घाड़ मारकर दम तोड़ दिया। अंग्रेजों ने उनके सभी 40 सैनिको को भी फांसी पर चढ़ा दिया और लाशों को कई किलोमीटर तक घसीटकर आतंक फैलाने की कोशिश की। मंगलवार को उनके प्रपौत्र राजा अंजुमन, महेंद्र चतुर्वेदी, अमन, राजेंद्र पाल आदि ने बलिदानी स्थल पर पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित किया।
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