संसारामयभेषजं सुखकरं श्रीजानकीजीवनम् ।
धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम् ।।
आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम के अवतरण की पावन तिथि है । वैसे तो राम अनादि हैं, योगियों के रमणधाम हैं किन्तु आसुरी शक्तियों का विनाश कर धर्म को प्रतिष्ठित करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होने वाले  लोकनायक श्रीराम  का प्राकट्य आज ही हुआ था ऐसा हम भारतीयों का अटूट विश्वास है ।
राम कथा अति प्राचीन काल से भारतीय जनमानस में प्रचलित रही है तथापि उनके विषय में सम्यक् जानकारी हमें वाल्मीकि के रामायण से प्राप्त होती है । (अवकाश प्राप्त प्रो डॉ माधवराज द्विवेदी)

रामायण की रचना के पूर्व वैदिक रचनाएं पद्यात्मक और छन्दोमयी होने पर भी स्तुति,धर्म,यज्ञ,पूजा और अध्यात्म के संदेशों से ही भरी हुई थीं,जनभावना और मानव चेतना से  उनका सम्बन्ध नहीं था । वाल्मीकि के मन में क्रान्तिकारी साहित्य की रचना का आन्दोलन चल रहा था । वे ऐसे चरितनायक की खोज में थे जो गुण,बल, चरित्र,धर्मज्ञता,कृतज्ञता,सत्यवादिता,व्रतपालन,सर्वभूतहित, ज्ञान सामर्थ्य आदि की दृष्टि से श्रेष्ठ हो । उन्होंने इस विषय में तप और स्वाध्याय में रत,वाग्विदों में श्रेष्ठ,मुनिश्रेष्ठ नारद से पूछा और उनसे  नरश्रेष्ठ राम का परिचय प्राप्त कर रामायण की रचना में प्रवृत्त हुए । वाल्मीकि के राम वास्तव में आसुरी संस्कृति के दुष्प्रभाव से संत्रस्त आर्य संस्कृति की प्रतिष्ठा करने वाले लोकनायक के रूप में भारतीय जनमानस के आराध्य बन जाते हैं । वे ऋत के प्रतीक हैं । उनका  आचरण अनुकरणीय है ।आज उनके आदर्श को अपनाने की सर्वाधिक आवश्यकता है ।अर्थ और काम  इस समय धर्म के नियन्त्रण से बाहर निकल चुके हैं । ऐसे समय में भगवान् राम के आदर्शों का  स्मरण और अनुपालन अपरिहार्य हो  गया है ‌मैं अपने सभी मित्रों एवं देशवासियों को राम के अवतरण दिवस पर हार्दिक बधाई देता हूं और सबके स्वास्थ्य तथा मंगल की कामना करता हूं ।

हिन्दीसंवाद
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