क्या भारत व दुनिया सूखे की ओर बढ़ रहे है? - अनुज अग्रवाल
मध्य मार्च से ही देश के दो तिहाई हिस्से में औसत तापमान 6 से 8 डिग्री तक ज़्यादा चल रहा है। लगातार बढ़ती तपिश ने रबी की फसलों को एक महीने पहले ही पका दिया या जला दिया। फल व सब्ज़ियों की एक पूरी फसल ही निबट चुकी है। गेहूं छोटे व हल्के पैदा हुए और कुल फसल अलग अलग क्षेत्रों में दस से तीस प्रतिशत तक कम पैदा हुई है। यही हाल सरसों का है। गेहूँ के निर्यात को उत्सुक भारत सरकार अब कितनी फसल बचा पाती है यह वक़्त ही बताएगा क्योंकि गर्मी से पहले की इस गर्मी ने सबकी गर्मी निकाल दी है और अभी मई और जून की गर्मी व जुलाई ,अगस्त व सितंबर की उमस भी बाक़ी है।यूँ तो मौसम विभाग कह रहा है कि देश में सामान्य मानसून रहेगा किंतु यह बात छुपा दी कि ऐसा कई बार होगा कि ढेर सारी बारिश कुछ ही समय में ताबड़तोड़ तरीक़े से ही हो जाएगी व बड़ा समय सूखा ही निकल जाएगा। कुछ वैसा ही जैसा केलिफ़ोर्निया, कुल्लालमपुर, ब्रिसबेन चीन, ब्राज़ील व भारत के अनेक हिस्सों जैसे सेकड़ो शहरों में पिछले दो वर्षों में हुआ और दक्षिण अफ़्रीका के डरबन सहित अनेक भागों में इन दिनो चल रहा है। यह खेल लाखों करोड़ रुपयों व जान माल की बर्बादी कर रहा है। सूखे के साथ आग, बारिश के साथ बाढ़ और भारी बारिश के साथ चक्रवात व तूफ़ान अब आम हो गया है और दिनोदिन बढ़ रहा है। भारत व दुनिया गहरे खाद्य व जल संकट के चक्रव्यूह में फँसती-धंसती जा रही है जो हर दिन के साथ बढ़ता जाएगा। कोरोना महामारी और रुस -यूक्रेन युद्ध के कारण पहले से ही दुनिया उत्पादन व वितरण यानी माँग व आपूर्ति शृंखला टूटने के कारण वस्तुओं व जिंसो की कमी व महंगाई से जूझ रही है। पिछले दो वर्षों में हर चीज़ की क़ीमत डेढ़ से दो गुनी हो गयी हैं। लोगों की आमदनी घटती जा रही है और वे कुपोषण, मानसिक व शारीरिक बीमारियों, ग़रीबी, बेरोज़गारी व असमय मौत के शिकार हो रहे हैं। अनेक देश ग्रहयुद्ध की ओर बढ़ रहे हैं। जैसे जैसे जलवायु परिवर्तन का असर गहराएगा यह सभी समस्याएँ और तीव्रता से बढ़ेंगी और दुनिया भयंकर अराजकता के चक्र में फँसती जाएगी। इस संकट के मूल में खनिज तेल , गैस, कोयला व मांसाहार के साथ ही केमिकल , खाद , कीटनाशकों, एयरकंडिशनर, फ्रिज आदि का प्रयोग व अय्याशीपूर्ण जीवनशैली है। दुनिया की आधि मिट्टी, जैव विविधता , पशु, पक्षी नष्ट हो चुके है व शेष तेज़ी से नष्ट हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इन संकटो के कारण इस बर्ष के अंत तक दुनिया के तीन सौ करोड़ लोग ग़रीबी की रेखा के नीचे आ जाएँगे।ग्रीन एनर्जी का प्रयोग व जैविक कृषि व खनिज तेल , गैस, कोयला व मांसाहार के साथ ही केमिकल , खाद , कीटनाशकों, एयरकंडिशनर, फ्रिज आदि से तुरंत मुक्ति से ही मानव सभ्यता के बचने की कुछ संभावना है।
सच तो यह है कि मानव जाति के साथ पशु - पक्षियों व वनस्पतियों तक का अस्तित्व ही संकट में है और शायद इस दशक के बाद हम सामान्य जीवन जी ही न पायें और अगले दशक में दुनिया बड़ी मात्रा में जनहानि से गुज़रे। जिस सूखे व तपिश से हम गुज़र रहे है यह तो झलक मात्र है जलवायु परिवर्तन के असली संकट की तस्वीर बस अगले कुछ वर्षों में सामने आने वाली है। इसलिए सुधर जाओ , नहीं तो निपट जाओगे।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
अध्यक्ष, मौलिक भारत
President,CareerPlus EducationalSociety
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