उतरौला (बलरामपुर) 
सत्संग ही मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने का रास्ता बताता है। बिना सत्संग के मनुष्य के भीतर विवेक सक्रिय नहीं होता। विवेकहीन व्यक्ति को हानि-लाभ, यश-अपयश या उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं हो सकता। 
मोहनजोत केवटली के समय माता मंदिर पर नवरात्र के अवसर पर चल रहे दस दिवसीय शतचंडी महायज्ञ के दौरान नैमिषारण्य से आईं बाल व्यास अंबिका ने सत्संग करते हुए उक्त बातें कहीं। उन्होने कहा कि रावण परम ज्ञानी होते हुए भी विवेक शून्य था इसलिए उसका बंधु-बांधवों के साथ वंश नष्ट हो गया। सत्संग में शामिल होने से व्यक्ति के भीतरी विकार नष्ट होते हैं। दुरात्मा भी ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन से चल रहे शतचंडी महायज्ञ में प्रतिदिन नगर व ग्रामीण क्षेत्रों से भारी भीड़ जुट रही है। कार्यक्रम अध्यक्ष मुनेश्वर प्रसाद साहू ने बताया कि कार्यक्रम में प्रतिदिन सुबह यज्ञ का आयोजन किया जाता है। शाम को प्रवचन का आयोजन किया जाता है। 
दस अप्रैल को पूर्णाहुति हवन के बाद भंडारे का आयोजन किया जाएगा।श्रीनिवास, मनीराम यादव, मंशाराम,  झिनकन प्रसाद, लक्ष्मी प्रसाद गुप्त, संजय गुप्त, संतराम, विश्वनाथ, राघव प्रसाद, जनकराम, बुधराम,मेहीलाल,शंकर शाहू, स्वामीनाथ,कन्हैयालाल यादव,पारश राम, का कार्यक्रम संचालन में विशेष योगदान है।
असग़र अली
उतरौला

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