*देश के लगभग सभी प्रांतों में मनाई जाती है नाग पंचमी*
लेखिका - *डॉ कामिनी वर्मा*
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश )
भारत वर्ष अनादि काल से आस्था प्रधान रहा है । अनादि अवस्था मे जब मानव ज्ञान - विज्ञान के क्षेत्र में वर्तमान सदृश प्रगति नही कर पाया था, तब यह आस्था अधिक बलवती होकर जन जन में व्याप्त थी । प्राचीन काल से अद्यतन गतिमान नागपूजा इसी आस्था का परिणाम है । आदिम मानव ने स्वयं से अधिक बलशाली प्रकृति में भयवश देवत्व के गुणों का आरोपण कर उनकी पूजा उपासना आरम्भ कर दी । जो आज भी लगभग सम्पूर्ण देश के साथ विदेशों में भी प्रचलित है ।
नागपंचमी, ऋषिपंचमी,अनंत चौदस, गूगा नवमी आदि नामों से मनाए जाने वाले त्योहारों में नागजाति के प्रति श्रद्धा और आस्था प्रकट की जाती है । आशीर्वाद प्रदान करते समय हाथ फैलाकर हथेली मष्तिष्क पर रखने की भारतीय परम्परा के मूल में शेषनाग के आशीर्वाद की ही कामना है । हाथ और उंगलियां शेषनाग और उसके पांच फनों का प्रतीक मानी जाती है । ज्ञान के प्रतीक यज्ञोपवीत में भी एक सूत्र ' नागतंतु ' के नाम से जाना जाता है ।
ऐतिहासिक संदर्भ में देखें तो नागों की आराधना के साक्ष्य लगभग 3000 ईसा पूर्व सैन्धव काल से ही उत्खनन में प्राप्त मूर्तियों और और मुहरों से मिलते हैं। विख्यात विद्वान फर्ग्यूसन इसे अनादि काल से *अज्ञात शक्ति* की भयवश उपासना के रूप में देखते हैं । ऋग्वैदिक संहिता में नागों के कल्याणकारी *अहिबुर्ध्य* तथा विनाशकारी *वृत* रूप का उल्लेख मिलता है ।अहिबुर्ध्य सर्पो को ही नागदेव समझकर पूजा की जाती है । तंत्रपूजा में भी नागपूजा का विशिष्ट महत्व है । यद्दपि यजुर्वेद और अथर्ववेद में उल्लिखित मंत्रो का प्रयोग तांत्रिक साधना में अधिक किया जाता है । तदपि योग में इसे कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक माना जाता है ।
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